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पृष्ठ:राजसिंह.djvu/९६

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दृश्य तीसरा अंक राजकुमारी-(अधीर होकर) सुनिए। आप क्या कहना चाहते हैं। कहिए न? रत्नसिंह-मैं भी पिताजी की भाँति मेवाड़ त्याग दूंगा। राजकुमारी-किस लिए? रत्नसिंह-क्या करूँ, जब कोई मेरी बात ही नहीं सुनता। राजकुमारी-सुनती तो हूँ, कहिए। रत्नसिंह-हाँ तो 'सोचता हूँ, कहूँ कि न कहूँ। जाने दो नहीं कहता। राजकुमारी-कहिए-कहिए। रत्नसिंह-फिर कभी सुन लेना-अभी तुम्हें देर हो रही है। राजकुमारी-आप कहिए । रत्नसिंह-सखियाँ बाट देख रही होंगी। राजकुमारी-हाथ जोड़ती हूँ-कहिए। रत्नसिंह-(हंसकर ) माता जी नाराज होंगी। राजकुमारी-(झुंझलाकर) कहीं कुछ न होगा। आप कहिए तो। रत्नसिंह-तब सुनो-मन लगाकर, ध्यान से । राजकुमारी-सुन तो रही हूँ। रत्नसिंह-हाँ, पिता जी तो दिल्ली चले गये । इसके बाद राजकुमारी-इसके बाद क्या ? रत्नसिंह-बड़ी गम्भीर समस्या है बड़ी टेढ़ी बात है। राजकुमारी-ऐसी क्या बात है ?