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पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१०२

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मक्खन से जो वी तयार करते हैं, उसे वे अनाज तथा दूसरी चीजो के बदले में दे देते हैं। ऊँटों के चराने वाले उनका दूध पीकर अपनी रक्षा करते हैं और रोटी के स्थान पर जंगली फल खाते हैं। वृक्षों में करील अथवा खेर का हम पहले उल्लेख कर चुके हैं। खेजरी के वृक्ष के छिलक को मुखाकर आटा तैयार किया जाता है। इसको वहाँ की भाषा में सांग्री कहते हैं। झल के वृक्ष वैसाख और जंठ में फल देते हैं। पीलू भोजन के काम में आता है। वहाँ के लोग बबूल के गोंद को एकत्रित करते हैं। वहाँ वरों के वृक्ष भी पाये जाते हैं। इस प्रकार के वृक्षो की संख्या वहाँ अधिक होती है। जवास के रस का गोद तैयार किया जाता है, वह ओपधियों में काम आता है। करील वृक्ष को भारतवर्ष में सभी लोग जानते हैं। इसे कैर भी कहते हैं। भारत के दूसरे स्थानों में उसका अचार डाला जाता है। लेकिन मरुभूमि में वह भोजन के लिए एकत्रित किया जाता है। यह एक तरह की झाडी का वृक्ष है। इसकी ऊँचाई दस फीट से पन्द्रह फीट तक होती है। इसकी हरी-हरी शाखाओं में पत्तियों नहीं होतीं। उनमें लाल रंग का फूल निकलता है और फल काले रंग का होता है। खाने के पहलं एकत्रित किये हुए करील के फल चौवीस घण्टे तक पानी में भिगोकर रखे जाते हैं। उसके बाद उस पानी को फेंककर दो बार दूसरे पानी से धोया जाता है । इसके पश्चात् उसे उबालकर नमक के साथ खाया जाता है। धनिक लोग वी में इसे तैयार करक रांटी के साथ खाते हैं। सभी लोग अपने घरों पर इसे सुखाकर रखा करते हैं। सज्जी- यह एक छोटा सा पेड़ है। यह विशेषकर मरुभूमि के उत्तरी भाग में पैदा होता है। जैसलमेर के खदल नामक स्थान में इसके वृक्ष अधिक पाये जाते हैं और भी स्थान हैं, जिनमें सज्जी के पेड़ बहुत अधिक पाये जाते हैं। साफ सज्जी के छोटे-छोटे पेड़ो को जमीन खांदकर भर देते हैं और लगातार तीन-तीन, चार-चार दिनों के बाद जो सज्जी निकाली जाती है, उसको साफ करते हैं। इस निकाली हुई सज्जी का बहुत से लोग व्यवसाय करते हैं। सज्जी रुपये की एक मेर विकती है। चारू और मारवाड़ के रहने वाले इसको खरीद लेते हैं और वे फिर दूसरे दुकानदारों को बंचकर लाभ उठाते हैं। यह सज्जी तैयार करके दंश के सभी भागों में जाकर विकती है। सिन्ध में इसका व्यवसाय अधिक होता है। यहाँ पर खरबूजा बहुत पैदा होता है। चिपरा, वामन और गांवर नाम की उनकी तीन किस्म होती हैं। यह खरबूजा खाने में अधिक स्वादिष्ट होता है। 94