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पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१०६

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करतीं। उसके मनोभावों में शासन की अभिलापा सजीव और शक्तिशाली हो रही थी। उसके जीवन में ऐसा होना सभी प्रकार स्वाभाविक था। मीणा कवि के साथ मित्रता बढ़ जाने पर धोलाराय ने उससे अपनी अभिलापा प्रकट की। कवि धोलाराय के मन के भावों से अपरिचित न था। किसी प्रकार की अभिन्नता न होने के कारण दोनों मे सभी प्रकार की बातें प्रायः हुआ उसके साथ परामर्श करने में धोलाराय कभी संकोच का अनुभव न करता। उसके मन की अभिलापा को समझकर मीणा कवि ने कहा- "मीणा राजा को नष्ट करके आप उसके सिंहासन के अधिकारी बन सकते हैं।" धोलाराय को अन्धकार में प्रकाश दिखायी दिया। वह इसी प्रकार का परामर्श चाहता था। उसके मन की गम्भीरता को समझकर कवि ने कहा- "चिरकाल से प्रचलित प्रथा के अनुसार दीवाली के दिन सभी मीणा राज्य के सरोवर में स्नान करते हैं। उस समय यहाँ का राजा भी स्नान करने के लिए आता है। ऐसे अवसर पर अपने सैनिको को लेकर आप अकस्मात् उस पर आक्रमण कीजिए। उसके मारे जाने पर आपको यहाँ के सिंहासन पर बैठने का अवसर मिलेगा।" कवि के इस परामर्श को सुनकर धोलाराय ने गम्भीरता के साथ विचार किया और उसने एक योजना बना डाली। दीवाली का त्यौहार आने पर धोलाराय ने बड़ी सावधानी और बुद्धिमानी से काम लिया। उसने दिल्ली पहुँच कर सैनिक सहायता प्राप्त की ओर अपनी योजना के अनुसार वह एक राजपूत सेना के साथ खोह गाँव के समीप पहुँच गया। मीणा लोगों के साथ स्नान के लिए सरोवर में प्रवेश करने पर धोलाराय ने एक साथ उस पर आक्रमण किया। राजा के बहुत से रक्षक सरोवर के भीतर मारे गये। धोलाराय ने अपने हाथ से मीणा राजा का संहार किया और इसी समय उसने मीणा कवि को भी-जिसने धोलाराय को इस प्रकार का परामर्श दिया था-मार डाला। उसको मारने के समय धोलाराय ने कहा- "जो अपने राजा के साथ विश्वासवात कर सकता है, वह संसार में किसी का विश्वासपात्र नहीं हो सकता।" धोलाराय ने मीणा राजा को मार कर खोह गॉव का अधिकार प्राप्त कर लिया। यही से ढूंढाड़, आमेर अथवा वर्तमान जयपुर राज्य की सृष्टि हुई। खोह गाँव पर अधिकार करने के बाद धोलाराय ने अपने राज्य को विस्तार देने की चेष्टा की। उन दिनों में जयपुर से तीस मील पूर्व की तरफ बाण गंगा के समीप दिओसा नामक स्थान में बडगुजर राजपूत रहा करते थे। धोलाराय ने अपनी सेना लेकर उनके दुर्ग के पास जाकर बड़गूजर के राजा के पास सन्देश भेजा- "आप अपनी लडकी का विवाह मेरे साथ कर दें।" बड़गूजर के राजा ने इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया और कहा कि हम दोनों ही सूर्यवंशी हैं। इसलिए यह विवाह नहीं हो सकता। लेकिन दोनों तरफ की बातचीत होने के पश्चात् वडगृजर के सरदार ने उस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और उसने अपनी लड़की का विवाह धोलाराय के साथ कर दिया। बड़गूजर के राजा के कोई पुत्र न था। इसलिए उसने धोलाराय को अपने राज्य का उत्तराधिकारी बना दिया और उसके बाद उसने धोलाराय के हाथों में राज्य का प्रवन्ध सौंप दिया। 98