इस विवाह के उपरान्त धोलाराय की शक्तियाँ पहले की अपेक्षा अधिक विशाल हो गयीं। उसने अपने राज्य को बढ़ाने की इच्छा की। माची नामक स्थान में राव नाटू नाम का एक मीणा राजा रहता था। धोलाराय ने उसको पराजित करने का विचार किया और माची पर उसके आक्रमण करने पर दोनों ओर से युद्ध हुआ। उस युद्ध में धोलाराय की विजय हुई। मीणा लोगों की सेना मारी गयी। धोलाराय ने माची राज्य में पहुँचकर अपना अधिकार किया और खोह गाँव की अपेक्षा उस नगर को उसने अधिक पसन्द किया। इसी आधार पर वह अपनी राजधानी खोह गाँव से माची ले आया और वहाँ पर उसने एक नया दुर्ग बनवाया। उस दुर्ग का नाम उसने रामगढ़ रखा। इसके थोड़े ही दिनों के बाद धोलाराय ने अजमेर की राजकुमारी भारोनी के साथ विवाह किया। एक दिन धोलाराय अपनी रानी के साथ देवी के मन्दिर में दर्शन करने के लिए गया था। वहाँ से उसके लौटने पर ग्यारह हजार सशस्त्र मीणा सैनिकों ने एकत्रित होकर मार्ग में उसका सामना किया। धोलाराय निर्भीक और साहसी था। उसने एकत्रित मीणा लोगो के साथ युद्ध किया। शत्रुओं की सेना अधिक थी। इसलिए युद्ध करते हुए धोलाराय मारा गया। उसके मर जाने पर वे सैनिक वहाँ से भाग गये। धोलाराय की रानी गर्भवती थी इसलिए वह किसी प्रकार वहाँ से बच कर निकल गयी। धोलाराय की मृत्यु के बाद उसकी विधवा रानी से एक बालक उत्पन्न हुआ। उसका नाम कॉकिल रखा गया। कॉकिल ने सिंहासन पर बैठकर ढूँढाड राज्य का उद्घार किया। उसका पुत्र मेदल भी अत्यन्त शूरवीर और पराक्रमी था। उसने अपनी सेना के साथ आमेर राज्य पर आक्रमण किया और मीणा लोगों को पराजित करके उसने आमेर पर अधिकार कर लिया। मेदल राव ने अपने पिता के राज्य की लगातार वृद्धि की। उसने नान्दला लोगों को जीतकर उनके स्थान गातूरगाती पर भी अधिकार कर लिया। धोलाराय के वंशधर इन दिनों में अपने राज्य का विस्तार कर रहे थे। मेदलराव की मृत्यु हो जाने पर हणदेव ने उसके सिंहासन पर अधिकार किया। उसके राज्य के आस-पास दूर तक मीणा लोग स्वतन्त्र जीवन व्यतीत कर रहे थे। हणदेव ने लगातार उन लोगों के साथ युद्ध किया। उसकी मृत्यु के बाद उसका लड़का कुन्तल सिंहासन पर बैठा। उसने पहाडी लोगों पर अपना शासन कायम किया। भूडवाड़ नामक स्थान पर इन दिनों में एक चौहान राजा रहता था। कुन्तल के साथ उसकी लड़की के विवाह का प्रस्ताव आया। राव कुन्तल ने उसे स्वीकार कर लिया और जिस समय वह सेना लेकर भूडवाड़ जाने के लिए तैयार हुआ, मीणा लोगों ने उस समय उसके पास सन्देश भेजा कि “अगर आप हम लोगों के बीच से गुजरें तो अपनी पताका और नगाड़ा हम लोगो के अधिकार में छोड़ जावें।" राव कुन्तल ने मीणा लोगों के इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया। उसके फलस्वरूप राव कुन्तल को विरोधी मीणा लोगों के साथ युद्ध करना पडा। उस युद्ध में बहुत-से मीणा मारे गये और शेप पराजित होकर भाग गये। राव कुन्तल की मृत्यु हो जाने पर पजून नामक कछवाहा राजपूत उसके सिंहासन पर बैठा। प्रसिद्ध कवि चन्दरवरदाई ने अपने ग्रन्थ में इसक वीरता का अद्भुत वर्णन किया है। ढूंढाड में कछवाहों का उदय होने के पहले वहाँ पर बड़े विस्तार के साथ मीणा जाति के लोग रहते थे और यह जाति पॉच शाखाओं में विभक्त थी। अजमेर से लेकर जमुना 99
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