पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१११

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के अधीन बना दिया था। राजा मानसिंह से भयभीत होकर कावुल को भी अकबर की अधीनता स्वीकार करनी पड़ी थी। अपने इन कार्यों के फलस्वरूप मानसिंह बंगाल, विहार, दक्षिण और काबुल का शासक नियुक्त हुआ था। वादशाह अकवर ने राजपूत राजाओं पर प्रभुत्व कायम करने के लिए जिस नीति का आश्रय लिया था और उनके साथ वैवाहिक सम्बन्ध जोड़े थे, वह नीति किसी समय संकटपूर्ण भी हो सकती है, इसका स्पष्ट प्रमाण मानसिंह के द्वारा वादशाह अकवर को मिला था। जिन दिनों में बादशाह अकबर भयानक रूप से बीमार होकर अपने मरने की आशंका कर रहा था, मानसिंह ने अपने भाजे खुसरो को मुगल सिंहासन पर विठाने के लिए पड़यन्त्रों का जाल विछा दिया था। उसकी यह चेष्टा दरवार में सवको मालूम हो गयी और वह बंगाल का शासक बनाकर भेज दिया गया। उसके चले जाने के बाद शाहजादा खुसरो को कैद करके कारागार में रखा गया। मानसिंह चतुर और दूरदर्शी था। वह छिपे तौर पर अपने भाञ्जे का पक्ष समर्थन करता रहा। मानसिंह के अधिकार में वीस हजार राजपूतों की सेना थी। इसलिए वादशाह ने . प्रकट रूप में उसके साथ शत्रुता नहीं की। कुछ इतिहासकारों ने लिखा है कि बादशाह ने दस करोड़ रुपये देकर मानसिंह को अपने अनुकूल बना लिया था। मुस्लिम इतिहासकारों ने लिखा हे कि हिजरी 1024 सन् 1615 ईसवी में मानसिंह की बंगाल में मृत्यु हुई। परन्तु दूसरे इतिहासकारों से पता चलता है कि वह उत्तर की तरफ खिलजी बादशाह से युद्ध करने के लिए गया था। वहाँ पर 1617 ईसवी में वह मारा गया। राजा भगवानदास की मृत्यु हो जाने पर मानसिंह जयपुर के सिंहासन पर बैठा। मानसिंह के शासनकाल में आमेर राज्य ने बड़ी उन्नति की। मुगल दरबार में सम्मानित होकर मानसिंह ने अपने राज्य का विस्तार किया। उसने अनेक राज्यों पर आक्रमण करके जो अपरिमित सम्पत्ति लूटी थी, उसके द्वारा आमेर राज्य को शक्तिशाली बना दिया। धोलाराय के बाद जो आमेर राज्य एक साधारण राज्य समझा जाता था, मानसिंह के समय वह एक शक्तिशाली और विस्तृत राज्य हो गया था। भारतवर्ष के इतिहास में कछवाहों अथवा कुशवाहा लोगों को शूरवीर नहीं माना गया, परन्तु राजा भगवानदास और मानसिंह के समय कछवाहा लोगों ने खुतन से समुद्र तक अपने बल, पराक्रम और वैभव की प्रतिष्ठा की थी। मानसिंह वादशाह की अधीनता में था। लेकिन उसके साथ काम करने वाली राजपूत सेना बादशाह की सेना से अधिक शक्तिशाली समझी जाती थी। मानसिंह के मर जाने के बाद उसका वेटा राव भावसिंह आमेर के राज सिंहासन पर बैठा। बादशाह ने स्वयं उसका अभिषेक किया और पञ्चहजारी मनसब का पद देकर उसको सम्मानित किया। लेकिन भावसिंह बुद्धिमान न था। वह मदिरा पीने का अधिक अभ्यासी था। सिंहासन पर बैठने के कई वर्ष बाद हिजरी 1030 मे अधिक मदिरा पीने के कारण उसकी मृत्यु हो गयी। इतिहास में उसके शासन का अधिक कोई विवरण नहीं लिखा गया। भावसिंह के मरने के बाद उसका बेटा महासिंह राज सिंहासन पर बैठा।* महासिंह भी विलासी और अधिक मदिरा सेवी था। इसलिए थोडे ही दिनो के बाद उसकी भी मृत्यु हो महासिह भावसिंह का बंटा नहीं था, बल्कि मानसिंह का पोता था। ऐसा कुछ लेखकों का कहना है।-अनु 103