गयी। मानसिंह के बाद आमेर के सिंहासन पर जो बैठे, उनकी अयोग्यता के कारण आमेर राज्य निर्बल पड़ गया। इन दिनों में जोधपुर के राजाओं ने मुगल दरबार में अपनी प्रतिष्ठा बना ली थी। महासिंह के मर जाने पर आमेर के सिंहासन पर कौन बैठेगा, उस राज्य में यह प्रश्न पैदा हुआ। मानसिंह के बाद जिन दो अयोग्य उत्तराधिकारियों ने आमेर के सिंहासन पर बैठकर, राज्य को क्षीण और दुर्बल बनाया था, उसकी पूर्ति जयसिंह ने की। जयसिंह मिर्जा के नाम से प्रसिद्ध हुआ। राजा जयसिंह ने कई बातों में मानसिंह का अनुकरण किया। राजा मानसिंह ने बादशाह अकबर की सहायता करके जिस प्रकार मुगल दरबार में सम्मानपूर्ण पद प्राप्त किया था, ठीक उसी प्रकार मिर्जा राजा जयसिंह ने बादशाह औरंगजेब के शासनकाल में मुगल साम्राज्य के साथ उपकार किये। अनेक युद्धों में औरंगजेब के साथ रहकर जयसिंह ने उसके शत्रुओं से युद्ध किया और विजय प्राप्त की। बादशाह औरंगजेब जयसिंह की वीरता और ईमानदारी को देखकर बहुत सन्तुष्ट हुआ और प्रसन्न होकर उसने जयसिंह को छः हजारी मनसब का पद दिया। मिर्जा राजा जयसिंह ने सभी प्रकार से मुगल-साम्राज्य की सहायता की। बादशाह के प्रभुत्व को बढ़ाने के लिए अनेक अवसरों पर उसने अद्भुत कार्य किये। दक्षिण में जिस शिवाजी के कारण बादशाह को बहुत समय से कोई सफलता न मिल रही थी और कई एक युद्धों में जिस शिवाजी ने बादशाह की फौज को छिन्न-भिन्न किया था, उस शिवाजी को बादशाह औरंगजेब के यहाँ कैदी बनाकर लाने का कार्य आमेर के राजा जयसिंह ने किया। कैद करने के समय राजा जयसिंह ने शूरवीर मराठा शिवाजी को वचन दिया था कि बादशाह के द्वारा आपका कोई अहित न होगा, इसका उत्तरदायित्व मेरे ऊपर है। शिवाजी पर जयसिंह की इस बात का प्रभाव पड़ा था और उसने पूर्णरूप से जयसिंह का विश्वास किया था। लेकिन शिवाजी के बन्दी होकर आ जाने पर औरंगजेब ने उसके साथ विश्वासघात करने की चेष्टा की। शिवाजी उस समय बन्दी अवस्था में बादशाह की अधीनता मे था। उसने जयसिंह का विश्वास किया था। उसको जयसिंह पर किसी प्रकार का सन्देह न था। बादशाह औरंगजेब के पास आने पर उसने जयसिह के द्वारा कई एक अच्छी बातों की आशा की थी। परन्तु औरंगजेब उसका उलटा हुआ। जीवन की इस भीपण अवस्था में जयसिह ने अपने वचनों का पालन किया। उसने शिवाजी को विश्वास दिलाया था। वह शिवाजी के साथ विश्वासघात न कर सका। जयसिंह ने बादशाह के भय की परवाह न की और उसने दिल्ली से शिवाजी के भाग जाने में निर्भीक होकर सहायता की। इसका परिणाम यह हुआ कि औरंगजेब से वह रहस्य अप्रकट न रह सका। बादशाह छिपे तौर पर जयसिंह से अप्रसन्न रहने लगा। इन्हीं दिनो मे मुगल-सिंहासन का अधिकार प्राप्त करने के लिए बादशाह औरंगजेब के यहाँ संघर्ष पैदा हुआ। मिर्जा राजा जयसिह ने आरम्भ मे सुलतान दारा के पक्ष का समर्थन किया। लेकिन उसके बाद उसने दारा का पक्ष छोड दिया। औरंगजेब जयसिंह से बहुत ईर्ष्या करने लगा था और छिपे तौर पर उसके सर्वनाश की चेष्टा कर रहा था। भारतीय इतिहासकारों के अनुसार मिर्जा राजा जयसिह के अधिकार में बाईस हजार अश्वारोही सेना थी और प्रथम - 104
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