दरवार में पड़यन्त्रों का अटूट जाल बिछा हुआ था, उस समय सवाई जयसिंह वर्तमान युद्धों और पड़यन्त्रों से अपने आपको पृथक न रख सका। कदाचित ऐसा सम्भव भी न था। मुगल साम्राज्य की शक्तियाँ क्षीण पड़ गयी थीं, चारों ओर अराजकता बढ़ रही थी और बाहरी जातियाँ लूट-मार करके देश का सर्वनाश कर रही थीं, उन संकटपूर्ण दिनों में भी सवाई जयसिंह ने आमेर राज्य की सम्पत्ति और उन्नति की अनेक प्रकार से रक्षा की थी। इससे उसकी योग्यता का प्रमाण मिलता है। सवाई जयसिंह से यह छिपा ना था कि निकट भविष्य में मुगल साम्राज्य का पतन होने जा रहा है, लेकिन उस समय भी अपने राज्य को सुरक्षित रखने के साथ-साथ उसने अवसरवादी वन कर कुछ लाभ नहीं उठाया। उसने वादशाह के साथ कभी विश्वासात करने का विचार नहीं किया। अवसरवादी होकर नाम कमा लेने से मनुष्य की श्रेष्ठता का परिचय नहीं मिलता और न इस प्रकार प्राप्त की हुई उन्नति अधिक समय तक स्थाई होकर रहती है। जिस समय मुगल दरवार में फर्रुखसियर का संहार करके राज्याधिकार छीन लेने का पड़यन्त्र चल रहा था, उस समय एक राजाओं ने उसका साथ दिया था। उन ओं में सवाई जयसिंह भी एक था। फर्रुखसियर में कई एक निर्वलतायें थीं। वह अपने पूर्वजों की तरह योग्य और साहसी न था। यदि उसमें कमजोरियाँ न होती तो सवाई जयसिंह की तरह के राजाओं की सहायता से उसका कभी अकल्याण न होता। मेवाड़ के राजवंश के साथ सवाई जयसिंह ने राजनीतिक और सामाजिक सम्वन्ध थे। इस प्रकार की वातों का वर्णन मेवाड़ के इतिहास में किया जा चुका है। जिस समय सैयद वन्धुओं ने फर्रुखसियर को मारकर अपना प्रभुत्व कायम किया था, उस समय राजस्थान का कोई भी राजा सभी प्रकार का लाभ उठा सकता था। लेकिन जयसिंह ने ऐसा नहीं किया। फर्रुखसियर को अयोग्य समझ कर और उसके मारे जाने पर वह अपनी राजधानी लौट आया और ज्योतिप-सम्वन्धी वातों के अध्ययन तथा मनन में लीन रहने लगा। फर्रुखसियर के मारे जाने के बाद मुगल राज्य में राजनीतिक विप्लव हुये। तीन वर्षों के बाद सन् 1721 ईसवी में वादशाह मोहम्मदशाह के द्वारा दोनों सैयद वन्धु मारे गये। इसके बाद जितने भी विप्लव हो रहे वे, शान्त हो गये। विप्लव के तीन वर्षो में सवाई जयसिंह अपनी राजधानी में रहकर ज्योतिप विज्ञान की उन्नति में लगा था। राज्य में शान्ति की व्यवस्था करने पर वादशाह ने सवाई जयसिंह को अपने यहाँ बुलाया और उसको आगरा तथा मालवा का शासक नियुक्त किया। जयसिंह ने शान्तिपूर्ण दिनों में मान मन्दिरों के निर्माण का कार्य किया था। मान मन्दिरों का निर्माण सवाई जयसिंह के जीवन का एक श्रेष्ठ कार्य था।* उसे इस विषय से इतना स्नेह था कि वह संसार सवाई जयसिंह ने अपने लेखों में स्वीकार किया है कि मैंने मन् 1728 ईसवी में ज्योतिष गणना और यन्त्र बनाने के कार्य को समाप्त किया । टसके पहले सात वर्षों तक मैं इस कार्य में विशेष रुप मे लवलीन रहा । उन दिनों में मैंने और कोई विशेष कार्य नहीं किया। डाक्टर डब्ल्यू हण्टर ने भारत में आने पर सवाई जयसिंह के बनवाये हुए मान मन्दिरों और ज्योतिष यंत्रों की परीक्षा करके जयसिंह की योग्यता की प्रशंसा की। उर्जन जाने पर डाक्टर हण्टर ने ज्योतिष के एक युवक पण्डित से बातचीत की। टस युवक का पितामह राजा सवाई जयसिंह का घनिष्ठ मित्र था और उसे ज्योतिषण्य की उपाधि मिली थी। राजा जयसिह ने ठसे पाँच हजार रुपये वार्षिक की जागीर भी दी थी। मराठों के अत्याचारों से वह जागीर अब नष्ट हो गयी है । डाक्टर इण्टर ने उस युवक के साथ ज्योतिष के सम्बन्ध में बातचीत करके उनकी योग्यता को स्वीकार किया और उसकी प्रतिभा की प्रशंमा की। डाक्टर हण्टर के टजन मे चले जाने के बाद सन् 1793 ईसवी में राजा सवाई जयसिह की जयपुर में मृत्यु हो गयी। प्रसिद्ध लेखक स्काट ने बादशाह औरंगजेब के उनराधिकारियों पर एक ऐतिहासिक ग्रन्थ लिखा है। उसमें लेखक ने राजा सवाई जयसिंह की मृत्यु का मार्मिक वर्णन किया है।
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