में तलवार की सहायता नहीं ली जानी चाहिए। ऐसे समय में राजनीतिक कौशल से ही सफलता प्राप्त हो सकती है। विजय सिंह ने जिस प्रकार पड़यन्त्र का आश्रय लिया है, वह राजनीतिक चालों से ही छिन्न-भिन्न किया जा सकता है। अपने मन्त्री के परामर्श के अनुसार, सवाई जयसिंह ने अपने सामन्तों को बुलाने के लिए सन्देश भेजा। सवाई जयसिंह का सन्देश पाने पर नाथावत वंश के प्रधान सामन्त मोहन सिंह, बॉसखो के सामन्त दीपसिंह, कुम्भानी, ब्रह्म शिव पोता सामन्त जोरावर सिंह, नरूका सामन्त हिम्मत सिंह, धूला के सामन्त कुशल सिंह, मोजाबाद के सामन्त भोजराज और माओली के सामन्त फतेह सिंह आदि आमेर राज्य की राजधानी में आकर एकत्रित हुए। उन सबके आने पर राजा सवाई जयसिंह ने दरवार में बैठकर कहा- 'आप सबने मुझे आमेर के राज-सिंहासन पर बिठाया है। मेरा भाई विजय सिंह वसवा नगर प्राप्त करने के लिए बादशाह के यहाँ चेष्टा कर रहा था। मैने जव सुना तो हर्पपूर्वक वह नगर मैंने उसको दे दिया। अब नवाब कमरुद्दीन खॉ बलपूर्वक इस सिंहासन से मुझे उतार कर राज्य का अधिकार मेरे भाई विजयसिंह को देना चाहता है।" राजा जयसिंह की बातो को सुनकर कुछ समय तक सामन्तों ने आपस में परामर्श किया और फिर एक मत होकर उन लोगों ने कहा- "वसवा नगर देकर आपने अपने भाई के साथ उदारता का परिचय दिया है। उस नगर को दे देने के बाद हम सब लोग एक मत होकर इस बात की प्रतिज्ञा करते हैं कि जैसे भी हो सकेगा, विजय सिंह द्वारा होने वाले उपद्रवों को हम लोग शान्त करेंगे।" सामन्तों की इस बात को सुनकर सवाई जयसिंह ने वसवा नगर का अधिकार-पत्र लिख कर सामन्तो को दे दिया। इसके बाद सभी सामन्तों ने अपने प्रतिनिधियों को भेजकर विजय सिंह के उपद्रव को शान्त करने की चेष्टा की। उन सब के उत्तर में विजय सिंह ने कहा- "मुझे अपने भाई के दिये हुए अधिकार-पत्र पर विश्वास नहीं है।" विजय सिंह का उत्तर पाकर सभी सामन्तों ने उसको विश्वास दिलाते हुए प्रतिज्ञा की कि "यदि राजा जयसिंह ने अपनी प्रतिज्ञा भंग की तो हम सब लोग आपका समर्थन करेंगे और राज्य के सिंहासन पर आपको विठावेंगे।" सामन्तो की इस प्रतिज्ञा पर विजय सिंह राजी हो गया और उसने राजा जयसिंह का दिया हुआ अधिकार-पत्र स्वीकार कर लिया। उस अधिकार-पत्र को लेकर विजय सिंह कमरुद्दीन खाँ के पास गया और उस अधिकार-पत्र को दिखा कर उसने सब बाते कहीं। कमरुद्दीन खाँ को उस अधिकार-पत्र पर सतोप न हुआ। लेकिन उसने बसवा नगर पर अधिकार करने के लिए विजय सिंह से कहा और उसकी सहायता के लिए खान दौरान खॉ और कृपा राम को साथ भेजा। विजय सिह के बसवा नगर को स्वीकार कर लेने पर आमेर राज्य के मामन्तों को प्रसन्नता हुई। उन लोगों ने दोनो भाइयो मे प्रेम और सहानुभूति पैदा करने के लिए चेप्टाएँ की। उन लोगो ने विजय सिह को राजधानी लाकर राजा जयसिह से मिलाने की कोशिश की। परन्तु विजय सिंह राजधानी में आने के लिए तैयार नहीं हुआ। वह जयपुर से पश्चिम की तरफ छः मील की दूरी पर सांगानेर नामक नगर मे जाकर रहने लगा। 112
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