राजा जयसिंह की इस वात को सुनकर आमेर के प्रधान सामन्त चौमूं के अधिकारी मोहन सिंह ने कहा- "देवती राज्य के विरुद्ध आक्रमण करना संकट पूर्ण है। इसका कारण यह है कि वड़गूजर राजा वादशाह के दरवार का एक सदस्य है और वह इन दिनों में अपनी सेना के साथ वादशाह की फौज के साथ है।" प्रधान सामन्त मोहनसिंह की इस बात को सुनकर उपस्थित सामन्त भयभीत हो उठे और किसी ने युद्ध के वीड़े को उठाने का साहस न किया। इसके बाद एक महीना बीत गया। राजा जयसिंह ने देवती राज्य पर आक्रमण करने के लिए फिर प्रश्न उपस्थित किया। परन्तु किसी सामन्त ने युद्ध का उत्तरदायित्व अपने ऊपर लेने का साहस नहीं किया। सभी को चुप देखकर सामन्त फतेहसिंह ने हाथ से उस बीड़े को उठाया और उसने देवती राज्य पर आक्रमण करने की तैयारी की। राजा जयसिंह ने फतेहसिंह की अधीनता में पाँच हजार अश्वारोही सेना भेजने का प्रबन्ध किया। उस सेना को लेकर फतेहसिंह देवती राज्य की तरफ रवाना हुआ। वहाँ पहुँचकर उसने सुना कि बड़गूजर राजा का भाई राजोर से गणगौर नामक मेले में गया है। यह सुनकर वह मेले की तरफ रवाना हुआ। वहाँ पहुँचकर उसने अपना दूत उसके पास भेजा। दूत ने वहाँ जाकर बड़गूजर राजा के भाई के हाथ में एक पत्र दिया। उस पत्र को पढ़ते ही उसने अपने सैनिको को आज्ञा दी कि इस दूत का सिर काट लिया जाये। इसी समय आमेर की सेना ने वहाँ पहुँचकर बड़गूजर राजा के भाई को केद कर लिया। उस समय उसके साथ राजोर के जो सैनिक थे, वे सब मारे गये। राजोर की रानी चौमूं के कछवाहा सामन्त की बहन थी। वह गर्भवती थी और फतेहसिंह की सेना के राजोर पर आक्रमण करने के समय वह प्रसव वेदना से पीड़ित थी। रानी ने फतेहसिंह के पास कहला भेजा- "प्रिय बन्धु मेरे गर्भ के कारण बालक के प्राणों की रक्षा करना।" इसी समय रानी को स्मरण हुआ कि राजोर पर इस आक्रमण के होने का मूल कारण मैं हूँ। मेरी ही बात को सुनकर मेरे देवर ने राजा जयसिंह पर भाले का वार किया था। इस दशा में मेरे जीवित रहने की आवश्यकता नहीं है। अपने मन में इस वात को सोचकर रानी ने तलवार से अपनी आत्महत्या कर ली। बड़गूजर राजा का भाई कैद हो चुका था। उसको मारकर और उसके कटे हुए मस्तक को एक कपड़े में लपेट कर फतेहसिंह वहाँ से लौटा और आमेर की राजधानी में आ गया। राजा जयसिंह के आदेश से वह कटा हुआ मस्तक उसके सामने दरवार में लाया गया। आमेर राज्य के प्रधान सामन्त मोहन सिंह ने अपने आत्मीय का कटा हुआ सिर देखकर अपनी आँखें वन्द कर ली और उसके नेत्रों से आंसू निकल- निकल कर गिरने लगे। मोहनसिंह का यह क्रन्दन देखकर राजा जयसिंह को बहुत असन्तोप मालूम हुआ। उसने मन-ही-मन सोच डाला कि इसी मोहनसिह ने देवती राज्य पर आक्रमण करने के प्रस्ताव पर सव सामन्तों के सामने विरोध किया और आज हमारे शत्रु के कटे हुये मस्तक को देखकर वह अश्रुपात कर रहा है। यह हमारे राज्य का प्रधान सामन्त होकर भी राजद्रोही और विश्वासघाती है। राजा जयसिंह ने उस समय उसमे कुछ न कहा। लेकिन कुछ दिन बीत जाने के बाद मोहनसिंह का अपमान करते हुये उसने कठोर शब्दों में कहा- "आपने 117 <
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