पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१२६

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उस दिन हमारे शत्रु के कटे हुये सिर को देखकर आंसू बहाये थे। लेकिन जब उस शत्रु ने हमारे ऊपर भाले का वार किया था, उस समय आपके नेत्रों में एक भी ऑसू की बूंद दिखाई नहीं पड़ी थी।" यह कहकर राजा जयसिंह ने मोहनसिंह की जागीर को आमेर राज्य में मिला लेने का आदेश दिया और मोहनसिंह को अपने राज्य से निकाल दिया। मोहनसिंह आमेर से निकल कर उदयपुर के राणा के यहाँ चला गया। राजा जयसिंह ने देवती और राजोर पर अधिकार करके उनको अपने राज्य में मिला लिया।* वे मिले हुये दोनों नगर मावेड़ी के नाम से प्रसिद्ध हुये। राजा जयसिंह के चरित्र मे अनेक अच्छाइयाँ थीं। परन्तु उसमें मदिरा पीने का दोप था। वह मधुसजात अथवा चावल की मदिरा पिया करता था। इस प्रकार की कुछ निर्बलताओं के होने पर भी राजा जयसिंह एक श्रेष्ठ पुरुप था, इसमें किसी को संदेह नहीं हो सकता। सवाई जयसिंह के पहले आमेर का राजमहल मानसिंह ने बनवाया था। उन दिनो की अपेक्षा आमेर की अवस्था जयसिंह के शासन के दिनों में बहुत बदल गयी थी। पहले का आमेर बहुत कुछ इन दिनों की अपेक्षा गौरवहीन था। मिर्जा राजा जयसिंह ने वहाँ के महल में कई एक कमरे बनवाये थे। परन्तु वे कमरे एक राजमहल के लिए अनुकूल न थे। इसलिए सवाई जयसिंह ने उनके सम्पर्क में एक दर्शनीय महल बनवाया, जिसको देखकर सभी लोगों ने प्रशंसा की। सन् 1726 ईसवी में सवाई जयसिंह ने जयपुर नाम की नवीन राजधानी कायम की। वहाँ के एक इतिहास से प्रकट होता है कि उन दिनों में राजा मल्ला सवाई जयसिंह के यहाँ मुसाहिब पद पर नियुक्त था और कृपाराम जयपुर का दूत बनकर दिल्ली में रहता था। बुधसिंह कुम्भानी दक्षिण में सम्राट के यहाँ दूत बनाकर नियुक्त किया गया था। जयपुर का विशेष विवरण आगामी पृष्ठों में लिखा गया है। राजा जयसिंह राजनीति और शासन में बहुत योग्य था। उसने सामाजिक बातों में कई एक सुधार किये थे। राजस्थान में लड़कियों के विवाहों और श्राद्ध जैसे कार्यो में राजपूतों के यहाँ बहुत अधिक धन खर्च किया जाता था और इस प्रकार के खर्चों के कारण ही राजपूतों में लड़कियों को जन्म के बाद मार डालने की एक पुरानी प्रथा प्रचलित थी। कुछ इस प्रकार के वीभत्स कार्यो के कारण वहाँ पर न जाने कितनी स्त्रियों को आत्म-हत्यायें करनी पडी थीं। राजा सवाई जयसिंह ने इस प्रकार के अनिष्ट कार्यों में बहुत सुधार किया और उनके खर्चों में बहुत कमी कर दी। उसने इस प्रकार के बहुत से सामाजिक नियम बनाये थे और अपने राज्य में उसने लोगों को उन नियमों पर चलने के लिए बाध्य किया था। विवाह और श्राद्ध आदि कार्यो के अवसरों पर जो वहाँ अत्यधिक खर्च किया जाता था, उन खर्चों को उसने अपने राज्य में बहुत कम करवा दिया। राजपूतों में प्रचलित पुरानी और अनावश्यक प्रथाओं में संशोधन का कार्य कितना जरूरी था, इसे सवाई जयसिंह ने भली प्रकार अनुभव किया और इसीलिये उसने उनमें आवश्क सुधार किये। उसके इन कार्यों से साफ जाहिर होता है कि वह न केवल

राजोर एक बहुत पुराना नगर था । वहाँ पर देवती राज्य की राजधानी थी। कई शताब्दियों से बडगृजर वश के राजपूत वहाँ पर रहते थे। इस वश के लोगो की बहादुरी की प्रशसा चन्द कवि ने अपने ग्रन्थ मे की है। सम्राट पृथ्वीराज के समय इस वंश के लोग युद्ध करने में बहुत प्रसिद्ध थे। 118