पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१३२

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में जवाहिरसिंह ने आमेर के राजा से कामा नामक राज्य दे देने के लिये कहा। परन्तु राजा माधवसिंह ने उसकी माँग की कुछ परवाह न की। इस अवस्था मे जवाहिर सिंह क्रुद्ध होकर माधव सिंह के साथ युद्ध करने के लिये अवसर की प्रतीक्षा करने लगा। वह किसी भी दशा में माधवसिंह के साथ युद्ध करना चाहता था। इसलिए उसने स्वयं अवसर पैदा करने की चेष्टा की। उसने जाटों की एक सेना तैयार की और पुष्कर तीर्थ जाने के लिये वह अपनी सेना के साथ जयपुर राज्य से होकर गुजरा। उसका ऐसा करना राजनीति के सर्वथा विरुद्ध था। जब एक राजा अपनी सेना के साथ दूसरे राज्य की भूमि से होकर निकलना चाहता है तो उसे नियम के अनुसार उस राजा से आज्ञा ले लेनी चाहिये। परन्तु जवाहिर सिंह ने ऐसा नहीं किया। वह अपनी सेना के साथ जयपुर राज्य के स्थानों से होकर पुष्कर चला गया। वहाँ पर मारवाड़ के राजा विजय सिह के साथ उसकी भेंट हुई। दोनों ने स्नेहपूर्वक पगड़ी बदली। इन दिनों मे आमेर का राजा माधवसिंह बीमार था। उसके दोनो भाई हरसहाय और गुरुसहाय उसके आदेश के अनुसार शासन का प्रबन्ध करते थे। दोनों भाइयों ने जब सुना कि जवाहिर सिंह अपनी सेना के साथ पुष्कर जाते हुये बिना आदेश के जयपुर राज्य से होकर गुजरा है तो उन भाइयो ने माधवसिंह के पास जाकर कहा और पूछा, "ऐसे अवसर पर क्या होना चाहिये।" अपने भाइयों के मुख से जवाहिरसिंह के अहंकारपूर्ण व्यवहार को सुनकर माधवसिंह को क्रोध मालूम हुआ। उसने उसी समय अपने भाइयों से कहा- इसके सम्बन्ध मे जवाहिरसिंह को एक पत्र लिखो और उससे कहो कि उसका यह कार्य सर्वथा नियम के विरुद्ध है। इसलिये दूसरी वार फिर से ऐसा न होना चाहिये। लेकिन यदि जवाहिरसिंह दूसरी बार फिर ऐसा करता है तो अपने सामन्तो को सेनाओं के साथ उस पर आक्रमण करने को कहो। राजा माधवसिंह के आदेश के अनुसार उसके दोनो भाइयों ने तुरन्त प्रबन्ध किया। उसने राज्य के सामन्तों को सारी बातें लिखकर युद्ध के लिए तैयार होने का अनुरोध किया। जयपुर राज्य से निकलने में जवाहिरसिंह का अपना एक उद्देश्य था। वह माधवसिंह के साथ युद्ध करने के लिये कोई कारण पैदा करना चाहता था। उसकी चाल से कारण पैदा हो गया। राजा माधवसिंह के भाइयों का भेजा हुआ पत्र पुष्कर मे जवाहिरसिह को मिला। उसने उस पत्र की पूर्ण रूप से उपेक्षा की और पुष्कर से लौटते हुए वह फिर जयपुर राज्य से होकर गुजरा। राजा माधवसिंह के सभी सामन्त अपनी सेनाओ के साथ युद्ध के लिये तैयार होकर आ चुके थे। जयपुर में जवाहिरसिंह की सेना के प्रवेश करते ही सामन्तों ने उस पर आक्रमण किया। जवाहिरसिंह इस होने वाले आक्रमण को पहले से ही जानता था और वह युद्ध के लिये तैयार होकर पुष्कर से लौटा था और दोनों ओर से भयानक युद्ध आरम्भ हुआ। अन्त में जवाहिरसिंह युद्ध से भागा और इस संग्राम का परिणाम यद्यपि जयपुर के पक्ष में रहा लेकिन आमेर राज्य के कितने ही प्रधान सामन्त उस युद्ध में मारे गये। जवाहिरसिंह के मर जाने पर उसका छोटा भाई रतनसिह सिंहासन पर बैठा। इन्ही दिनों में वृन्दावन के एक गोस्वामी के साथ रतनसिह की भेट हुई। गोस्वामी ने अपनी योग्यता का परिचय देते हुए रतनसिंह से कहा-"किसी भी धातु को मै सोना बनाना जानता है। लेकिन 124