पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१३३

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ऐसा करने में पहले बहुत सा धन खर्च करना पड़ता है।" गोस्वामी की इस बात को सुनकर रतनसिंह ने उस पर विश्वास किया और उसकी मॉग के अनुसार उसने उसको रुपये दिये। गोस्वामी ने उन रुपयों को लेकर सोना देने के लिये एक निश्चित दिन बता दिया। उस वताये हुये दिन को उसे न तो सोना मिला और न उसके दर्शन हुये। लेकिन उसके बाद उसी गोस्वामी ने अवसर पाकर रतनसिंह पर आक्रमण किया और उसके प्राण ले लिये। रतनसिंह के मारे जाने पर उसका छोटा लड़का केशरी सिंह सिंहासन पर बैठा। उसकी अवस्था छोटी थी। इसलिये रतनसिंह का छोटा भाई नवलसिंह शासन की देख- भाल करने लगा। केशरी सिंह के वाद रणजीतसिंह जाटों के सिंहासन पर बैठा। उसने अपने शासन काल मे अधिक ख्याति पायी। उन्हीं दिनों में अंग्रेज सेनापति लार्ड लेक ने भरतपुर पर आक्रमण किया। उसके साथ रणजीतसिंह ने भयानक युद्ध किया। सन् 1805 ईसवी में रणजीतसिंह की मृत्यु हो गयी। रणधीर सिंह, वलदेव सिंह, हरदेव सिंह और लक्ष्मण सिंह नाम के रणजीतसिंह के चार लड़के थे। रणधीरसिंह अपने पिता के सिंहासन पर बैठा। उसके बाद उसका छोटा भाई भरतपुर के सिंहासन पर बैठा। उसके शासनकाल में अंग्रेजों ने फिर भरतपुर पर आक्रमण किया और कुछ दिनों तक वहाँ के दुर्ग को घेरे रहकर अंग्रेजों ने विजय प्राप्त की। भरतपुर राज्य को अधिकार में लेकर अंग्रेजों ने राज्य में धन और सम्पत्ति लूट ली। यहाँ पर जाटों की कुछ बातों पर प्रकाश डालना जरूरी है। माचेड़ी आमेर राज्य की अधीनता में था। नरूका वंश का प्रतापसिंह माचेड़ी में शासन करता था। माधवसिंह ने प्रतापसिंह से माचेड़ी का राज्य लेकर अपने अधिकार में कर लिया था। प्रतापसिंह माचेड़ी से जाटों के राजा जवाहरसिंह की शरण में गया। उसने प्रतापसिंह को अपने यहाँ आश्रय दिया और उसके जीवन निर्वाह के लिये उसने उसको भूमि भी दी। प्रतापसिंह के चले जाने पर उसके स्थान पर खुशहाली राम नामक व्यक्ति माचेड़ी का सामन्त बनाया गया और उन्हीं दिनों में जयपुर दरबार में नन्दाराम नाम का एक आदमी दूत के स्थान पर नियुक्त किया गया। सत्रह वर्ष तक राज्य कर पेट की बीमारी से माधवसिंह ने परलोक की यात्रा की। शासन पर बैठने के बाद उसने जो संकल्प किये थे, उन्हें वह पूरा न कर सका। उसकी मृत्यु के वाद शिशु अवस्था में उसका पुत्र सिंहासन पर बैठा। इसलिये माधवसिंह के बाद जयपुर की अवस्था थोड़े ही दिनों में बहुत निर्वल हो गई। राजा माधवसिंह ने अपने शासन काल में कई नगर वसाये थे। उनमें रणथम्भौर नामक एक नगर अधिक प्रसिद्ध हुआ। उसके दुर्ग के पास माधवसिंह ने अपने नाम पर माधवपुर नामक नगर बसाया था। वह नगर कई बातों में वहुत सुन्दर था। माधवसिंह की दोनों रानियों से पृथ्वीसिंह और प्रतापसिंह नामक दो वालक पैदा हुये थे। माधवसिंह की मृत्यु के बाद छोटा बालक पृथ्वीसिंह जयपुर के सिंहासन पर बैठा । पृथ्वीसिंह की माता छोटी रानी और प्रतापसिह की मॉ बड़ी रानी थी। इसलिए प्रताप की माता पृथ्वी सिंह के वालक होने के कारण शासन का प्रबन्ध करने लगी। वह चन्द्रावत वंश में पैदा हुई थी। शासन की महत्वाकाक्षा पहले से ही उसके हृदय में थी। बड़ी रानी होने के कारण इसके लिये वह अधिकारिणी भी थी। उसके आचरण में दृढ़ता थी। शासन को अपने 12.