(5) इस सन्धि को स्वीकार करके राजा जगतसिंह ने कम्पनी के अधिकारों को मन्जूर किया है। यदि किसी समय किसी के साथ राजा जगतसिंह का संघर्ष पैदा होगा तो सन्धि के अनुसार उस संघर्ष का कारण जगतसिंह कम्पनी के अधिकारियो के सामने उपस्थित करेगा। कम्पनी उस संघर्ष को दूर करने की चेष्टा करेगी। (6) किसी भी आवश्यकता के समय आमेर की सेना कम्पनी की सेना के साथ रहकर युद्ध करेगी। (7) कम्पनी के अधिकारियों के आदेश के बिना राजा जगतसिंह को किसी देशी अथवा विदेशी शक्ति के साथ सन्धि अथवा मेल करने का अधिकार न होगा। ऊपर लिखी हुई सन्धि पर सन् 12 दिसम्बर 1803 ईसवी को दोनों पक्षों की तरफ से हस्ताक्षर किये गये और उस पर मोहर लगायी गयी। इस प्रकार कम्पनी के साथ राजा जगतसिंह ने सन्धि करके मित्रता की। लेकिन वह मैत्री अधिक दिनों तक कायम न रह सकी। अंग्रेज लेखकों ने राजा जगतसिंह पर दोषारोपण करते हुए इनके सम्बन्ध में लिखा- "जयपुर के राजा ने सन्धि में लिखी हुई शर्तो की अवहेलना की। इसलिए लार्ड कार्नवालिस को इस सन्धि को तोड़ देने का विचार करना पड़ा।" अंग्रेज लेखको का राजा जगतसिंह पर यह झूठा दोषारोपण था। इसका प्रमाण आचिसन साहव के एक लेख से मिलता है। उसने लिखा है- "लार्ड कार्नवालिस ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी को जगतसिंह के साथ की गई सन्धि को तोड़ देने का आदेश दिया। इसके पहले राजा जगतसिंह ने ऐसा कोई कार्य नहीं किया था, जिससे उसकी तरफ से सन्धि की शतों की अवेहलना प्रकट होती। सन्धि टूटने के पहले होलकर की सेना के साथ कम्पनी का युद्ध हुआ था। उस समय राजा जगतसिंह ने लार्ड लेक की सेना के साथ जाकर मराठों से युद्ध किया था।" इस लेख से साफ जाहिर होता है कि सन्धि टूटने का अपराध राजा जगतसिंह पर नहीं, कम्पनी पर था। कम्पनी का हित इसी में था कि उसने राजा जगतसिंह के साथ जो सन्धि की है, वह टूट जाए। उस सन्धि के टूट जाने से जयपुर को भयानक क्षति उठानी पड़ी। मराठो के अत्याचार फिर से जयपुर में आरम्भ हो गये। इनके आरम्भ होने का कारण यह था कि सन्धि के अनुसार जयपुर के राजा जगतसिंह ने अंग्रेज सेनापति जनरल लेक का साथ देकर होलकर के साथ युद्ध किया था। इसके बाद कम्पनी ने जयपुर की सन्धि तोड़ दी और उसक परिणाम जयपुर को भोगना पड़ा। जगतसिंह जिन दिनों में आमेर के सिंहासन पर बैठा था, उन दिनों में मेवाड़ में राणा भीमसिह का और मारवाड़ मे राजा मानसिंह का शासन चल रहा था। ये तानो समकालीन राजा थे। राजा मानसिंह से उसके सामन्त प्रसन्न न थे। उन्हीं दिनों में पोकर्ण के सामन्त सवाईसिंह ने राजा मानसिंह के साथ संघर्ष पैदा किया। सवाईसिंह किसी प्रकार मानसिंह को सिंहासन से उतार देने की चेष्टा कर रहा था। उसकी इस चेष्टा को शक्तिशाली बनाने वाले कई कारण पैदा हो गये थे। मानसिंह के पहले राजा भीमसिंह मारवाड़ के सिंहासन पर था। उसके भरने के बाद उसकी गर्भवती रानी से एक लड़का पैदा हुआ था। उसका नाम धौकलसिंह था। सवाईसिंह 731
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