पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मानसिंह से अप्रसन्न था। इसलिए उसके सिंहासन पर बैठने के बाद सवाईसिंह ने धौकलसिंह का पक्ष लेकर मानसिंह का विरोध किया और एक भयानक संवर्प पैदा कर दिया। वह राजनीति में बहुत चतुर था। इसलिए उसने मानसिंह के विरुद्ध एक पड़यन्त्र की रचना की और उसके अनुसार उसने आमेर और मारवाड़ के राजाओ मे संघर्ष पैदा कराने का सफल प्रयत्न किया। उसका अनुमान था कि इन दोनों राजाओं की शत्रुता बढ़ जाने से मेरी चेष्टा सफल होगी और मारवाड के सिंहासन से मानसिह को उतार कर धौकलसिंह को विठाने में में सफल हो सकूँगा। सामन्त सवाईसिंह के द्वारा पैदा होने वाले संघर्ष का वर्णन विस्तार के साथ इस पुस्तक में पहले किया जा चुका है, इसलिए यहाँ पर फिर उसका उल्लेख करना किसी प्रकार आवश्यक नहीं। राजा जगतसिंह ने ऊपर लिखी हुई सन्धि ईस्ट इण्डिया कम्पनी के साथ की थी। वह सन्धि उसी समय तक चली, जब तक कम्पनी के अंग्रेजों को उसकी आवश्यकता रही। उस सन्धि को तोड़ देने से जिस समय कम्पनी को अपना लाभ मालूम हुआ तो वह विना किसी आधार के तोड़ दी गयी और उसका अपराधी राजा जगतसिंह को बनाया गया। इन दिनो में ईस्ट इण्डिया कम्पनी की शक्तियाँ बरावर बढ़ रही थीं। राजस्थान के सभी राजाओं ने क्रम- क्रम से कम्पनी के साथ सन्धियाँ की। उस दशा में जयपुर के राजा को फिर विवश होकर सन् 1818 ईसवी की 2 अप्रैल को कम्पनी के साथ नयी सन्धि करनी पड़ी। जगतसिंह न केवल शासन में वल्कि अन्य बातों में भी अयोग्य था। उसकी इस अयोग्यता के कारण जयपुर राज्य का पतन हुआ। अयोग्य मनुष्य को सांसारिक ज्ञान के अभाव में अपने ऊपर भी विश्वास नहीं रहता और इसीलिए उसको दूसरे के इशारों पर चलना पड़ता है। इस दशा में उससे उचित और अनुचित कोई भी लाभ उठा सकता है। जगतसिंह की यही अवस्था थी। अपनी निर्वलता के कारण उसको होलकर की सेना के एक अधिकारी अमीर खाँ की सहायता लेनी थी। अमीर खाँ दूसरे को लूटने में एक असाधारण पुरुप था। उसने अपनी सेना के खर्च के नाम पर जयपुर राज्य से अपरिमित सम्पत्ति ली थी और उसके बाद भी उसने जयपुर राज्य के कितने ही ग्रामो और नगरो पर अधिकार कर लिया था। इन दिनों में केवल अमीर खाँ जयपुर राज्य की अधोगति का कारण बन गया था। वह कूटनीति का पण्डित था। उसनं जयपुर में भयानक रूप से अशान्ति पैदा कर दी थी। अमीर खाँ एक तरफ अंग्रेजों का मित्र बनने की कोशिश करता था और दूसरी तरफ वह जयपुर के राजा जगतसिंह को अंग्रेजों के विरुद्ध उत्तेजित किया करता था। उसकी भलाई इसी में थी कि अंग्रेजों के साथ जगतसिंह की सन्धि चल न सकी। वह भयानक रूप से तिकड़मवाज था। अंग्रेजो से जगतसिंह की निन्दा किया करता था और जगतसिंह को अंग्रेजो से सदा सावधान रहने की चेतावनी दिया करता था। जगतसिंह उसकी इन चालो को समझ न सका। उसमे न तो इतनी योग्यता थी और न आत्म-विश्वास था। अपनी इन निर्वलताओ के कारण वह राज्य के सामन्तो और मन्त्रियों पर भी विश्वास न करता था। उसकी इन कमजोरियों का अनुचित रूप से लाभ अमीर खाँ ने उठाया। उसने जगतसिह को अंग्रेजो के साथ सन्धि न करने के लिए सदा तैयार किया। वह जगतसिह का मित्र न था। उसको अयोग्यता के कारण अमीर खाँ इन दिनों में जयपुर को असहाय समझता था। इसलिए इन दिनों में उमनं जयपुर के अत्यन्त समीप माधव राजपुरा नामक स्थान पर गोलां की वर्षा की थी। जिससे घबराकर जगतसिंह को दूसरी वार अग्रेजों के 132