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पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१४७

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पड़यंत्र की सफलता में इसके बाद भी लगा रहा। उसके सामने अभी तक निराशा का कोई कारण न था। सन् 1818 ईसवी के दिसम्बर की 21 तारीख को राजा जगतसिंह की मृत्यु हुई थी। सन् 1819 ईसवी की 24 मार्च को सुनने को मिला कि राजा जगतसिंह की भाटियानी रानी को आठ महीने का गर्भ है। यह बात कई महीने तक नाजिर से छिपा कर रखी गयी थी। इन्हीं दिनो में एक दिन राजा जगतसिंह की सोलह विधवा रानियाँ राज्य के प्रधान सामन्तों की पत्नियों को लेकर भाटियानी रानी के महल में गयी। उन सबने देख सुनकर और सभी प्रकार समझकर इस बात को स्वीकार किया कि भाटियानी रानी गर्भवती है, इसमें कोई सन्देह नहीं। राज्य के सामन्तों ने इस निर्णय को सुनकर अत्यधिक सन्तोप प्रकट किया और सभी ने मिलकर प्रतिज्ञा की कि अगर भाटियानी रानी से बालक पैदा होगा, तो हम सब लोग उसको अपना राजा मानकर स्वीकार करेंगे। इस प्रतिज्ञा-पत्र पर सभी सामन्तों के हस्ताक्षर हो गये। उसके बाद वह पत्र नाजिर के पास भेजा गया और उससे भी उस पर हस्ताक्षर करने के लिये कहा गया। नाजिर को अभी तक रानी के गर्भवती होने का समाचार मालूम न था। इसलिये उस प्रतिज्ञा-पत्र को असंगत और सारहीन समझकर उसने भी हस्ताक्षर कर दिये। इसके बाद रानी के गर्भवती होने का समाचार राज्य में फैलने लगा। राजा जगतसिंह की मृत्यु के चार महीने और चार दिन बीत जाने पर 25 अप्रैल को प्रात:काल भाटियानी रानी से बालक पैदा हुआ। इस समाचार को सुनकर राज्य के सभी सामन्त बहुत प्रसन्न हुए। राजधानी में अनेक प्रकार के उत्सव किये गये। लेकिन उस बालक के जन्म से नाजिर पर वज्राघात हुआ। भाटियानी रानी से उत्पन्न हुआ बालक राजसिहासन पर बिठाया गया। उसका अभिपेक हुआ और बालक मोहनसिंह को सिंहासन से उतारकर नरवर भेज दिया गया। 139