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पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१४६

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वह अन्त:पुर का एक साधारण संरक्षक था। लेकिन अपनी कूटनीति के द्वारा उसने दरवार से लेकर राज्य तक सवको अपनी मुट्ठी में बॉध रखा था। उसने अंग्रेज रेजीडेन्ट को भुलावे में रखा और उसकी तरफ से आने वाले कर्मचारी से अपने पक्ष के समर्थन का काम लिया। इन दिनों में पटरानी ने यदि साहस करके उसका विरोध न किया होता तो मोहनसिंह के अभिषेक का राज्य में कोई विरोधी न था। पटरानी के विद्रोह करने पर नाजिर का मायाजाल निर्बल पड़ने लगा। उसके पास कूटनीति के अस्त्री की कमी न थी। उसने पटरानी को अपने पक्ष में करने के लिए एक रास्ता निकाला। वह जोधपुर के राजा की वहन थी।* नाजिर जोधपुर के राजा मानसिंह के पास पहुँचा और जयपुर राज्य की परिस्थितियों को बड़ी बुद्धिमानी के साथ उसके सामने रखकर सभी प्रकार का शिष्टाचार और सम्मान प्रदर्शित किया। उसका विश्वास था कि पटरानी अपने भाई के आदेश को जरूर मानेगी। राजा मानसिंह की अपने पक्ष में सम्मति ले लेना वह जरा भी कठिन कार्य नहीं समझता था। नाजिर ने राजा मानसिंह से प्रार्थना करते हुए कहा- "राजा जगतसिंह ने मरने के पहले आमेर के सिंहासन पर बालक मोहनसिंह को विठाने का आदेश दिया था। अपने राजा की आज्ञानुसार ही राज्य में मोहनसिंह का अभिषेक किया गया है। हमारी पटरानी को इसमें कुछ भ्रम हो गया है। इसलिए आप उसे सुलझा देने की कृपा करें। पटरानी के विरोध से राज्य में अशान्ति ठत्पन्न हो रही है और यह अशान्ति राजा जगतसिंह के सम्मान के विरुद्ध है।" ____ नाजिर ने सभी प्रकार की बातें कह कर राजा मानसिंह को प्रभावित करने की चेष्टा की। लेकिन उस राजा पर नाजिर का कोई प्रभाव न पड़ा। राजा मानसिंह ने उसको उत्तर देते हुए कहा- जयपुर के सिंहासन पर इस समय किसको विठाया जाये, इसका निर्णय करने के लिए, प्रचलित प्राचीन प्रथाओं के अनुसार राजा के प्रधान सामन्त अधिकारी हैं। आप उन सामन्तों की सम्मति उनके हस्ताक्षरों के साथ ले लीजिये। इसके बाद आपको पटरानी की सम्मति की आवश्यकता न रहेगी और यदि होगी तो मैं उसके हस्ताक्षर करवा दूंगा। राजा मानसिंह के उत्तर को सुनकर नाजिर ने आश्चर्यचकित होकर उसकी ओर देखा। यह उसका अन्तिम अस्त्र था। उसके प्रयोग में वह पूर्ण रूप से असफल हुआ। जोधपुर से लौटकर नाजिर ने एक नया पड़यंत्र रचा। राज्य के सामन्तों और पटरानी का विरोध करने के लिये उसने एक शक्तिशाली राजपूत राजा को खोजना आरम्भ किया। उसने विश्वास किया वह मोहनसिंह का समर्थन करेगा तो आज जो विरोध पैदा हुए हैं, वे अपने आप सव खत्म हो जायेगे। बहुत कुछ सोच समझकर नाजिर ने उदयपुर के राणा को अपने पक्ष में लाने की कोशिश की। उसने राणा की पोती के साथ मोहनसिंह के विवाह का प्रस्ताव अपने दूत के द्वारा भेजा। राणा को इसके रहस्य की कोई जानकारी न थी। उसने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। राणा के जो प्रतिनिधि दिल्ली में मौजूद थे, नाजिर ने उनकी सम्मति भी प्राप्त कर ली। लेकिन राणा के दरवार में कुछ वुद्धिमान व्यक्तियों ने विवाह के प्रस्ताव का विरोध किया। उसका फल यह हुआ कि राणा ने विवाह के उस प्रस्ताव को नामन्जूर कर दिया। नाजिर अपने • कुछ लेखकों ने पटरानी को जोधपुर के राजा की पुत्री माना है। 138