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सकता था। बहुत सोच समझकर द्वारिकादास ने खानजहाँन लोदी को संदेश भेजा कि वादशाह ने आपके विरुद्ध अत्यन्त अनुचित कार्य मुझे सौंपा है। मैं बड़े असमंजस में हूँ। आप या तो वादशाह के सामने आकर आत्म-समर्पण करें अथवा भाग जावें। खानजहॉन ने द्वारिकादास का यह संदेश पाया। वह एक शूरवीर था। द्वारिकादास के परामर्श के अनुसार न तो उसने आत्म-समर्पण करना चाहा और न भाग जाना ही उचित समझा। इन दोनों बातों की अपेक्षा उसने मित्र के हाथों से मारे जाने पर अपनी श्रेष्ठता समझी। फरिश्ता ने अपने इतिहास में इस घटना का वर्णन करते हुए दोनों वीरों की प्रशंसा की है। युद्ध-क्षेत्र में पहुँच कर दोनों लड़े और दोनों ही एक-दूसरे की तलवार से मारे गये।" द्वारिकादास के बाद उसका लड़का वीरसिंह देव उसके स्थान पर बैठा। वीरसिंह देव अपनी सेना के साथ मुगल बादशाह की आज्ञा से दक्षिण के युद्ध में गया था। वहाँ पर उसके युद्ध कौशल से प्रसन्न होकर वादशाह ने उसको परनाला का शासक बना दिया। खण्डेला के एक ऐतिहासिक ग्रंथ से पता चलता है कि वीरसिंह देव आमेर के राजा की अधीनता में न रह कर स्वतंत्र रूप से शासन करता था। परन्तु उस समय की परिस्थितियों से यह बात सम्भव नहीं मालूम होती। क्योंकि मिर्जा राजा जयसिंह उन दिनो में सम्राट के यहाँ सम्मानपूर्ण पद पर था। इसलिए वीरसिंह देव उसकी अधीनता में अपने राज्य पर शासन करता था, यह अधिक सम्भव मालूम होता है। ___ वीरसिंह देव के सात लड़के पैदा हुए। (1) वहादुर सिंह (2) अमर सिंह (3) श्याम सिंह (4) जयदेव (5) भूपाल सिंह (6) मोकर सिंह और (7) प्रेमसिंह । वीरसिंह देव ने अपने जीवन काल में ही वहादुर सिंह को अपना उत्तराधिकारी बनाया था और शेप छः पुत्रों को एक-एक जागीर दे दी थी। राजा वीरसिंह देव बहादुर सिंह को अपने राज्य का अधिकार देकर अपनी सेना के साथ वादशाह की सेना में सम्मिलित होकर दक्षिण गया था। वहाँ पर उसे समाचार मिला कि उसका वड़ा लड़का वहादुर सिंह राजा की उपाधि लेकर राज्य का शासन करने लगा है। यह सुनकर वहादुर सिंह पर वीरसिंह देव वहुत क्रोधित हुआ और अपने चार सवारों को साथ लेकर दक्षिण से वह अपने राज्य की तरफ रवाना हुआ। अपने राज्य खण्डेला से चार मील की दूरी पर आकर एक ग्राम की किसी जाट स्त्री के यहाँ वीरसिंह देव ने मुकाम किया और उस स्त्री से उसने भोजन तैयार करने के लिए कहा। साथ ही उसने यह भी कहा कि "हमारे घोडों की देखभाल करना, कहीं कोई उनको खोलकर ले न जाये।" वीरसिंह देव की इस बात को सुनकर उस जाट की स्त्री ने कहा- "आप इस बात की चिंता न करे। राजा वहादुर सिंह का यहाँ पर शासन है। रास्ते में आप सोना छोड़कर चले जाइए, कोई उसे छू भी नहीं सकता।" ___अपने लड़के के शासन की इस प्रकार प्रशंसा सुनकर वीरसिंह देव वहुत प्रसन्न हुआ। वहाँ से वह फिर दक्षिण लौट आया और वहीं पर उसकी मृत्यु हो गयी। वीरसिंह देव के मर जाने के बाद बहादुर सिंह विधान के अनुसार पिता के सिंहासन पर वैठा। नियमित रूप से उसका अभिषेक हुआ और उसने शासन का कार्य आरम्भ किया। मुगल बादशाह औरंगजेब अपनी सेना के साथ उन दिनों दक्षिण में था। बहादुर खाँ नामक 147