पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१५४

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मनोहरपुर के राजा ने द्वारिकादास का उपहास कराने के लिए वादशाह से यह बात कही थी। लेकिन वादशाह ने उसे गम्भीरता देकर द्वारिकादास को सिंह से युद्ध करने के लिए आज्ञा दी। द्वारिकादास भली प्रकार इस बात को समझता था कि बादशाह से मनोहरपुर के राजा ने जो इस प्रकार की बात कही है, उसके दो अभिप्राय हैं, एक तो यह कि इस प्रकार बादशाह के आदेश देने पर मैं सिंह के साथ युद्ध करने से इनकार करुंगा, उससे मेरा उपहास होगा। दूसरा अभिप्राय उसका यह हो सकता है कि यदि मैंने इनकार न किया तो सिंह के द्वारा मेरा प्राणनाश होगा। बादशाह का आदेश सुनकर द्वारिकादास जरा भी भयभीत न हुआ और उसने शेर के साथ युद्ध करना स्वीकार कर लिया। बादशाह की सम्पूर्ण राजधानी में यह वात फैल गयी कि जंगल से जो शेर पकड़ कर लाया गया है, द्वारिकादास उसके साथ युद्ध करेगा। बादशाह की तरफ से युद्ध के लिए स्थान तैयार किया गया। निश्चित समय से पहले ही दर्शकों की एक अपार भीड़ वहाँ पर एकत्रित हो गयी। द्वारिकादास अपनी तैयारी करने लगा। स्नान करके पीतल के एक पात्र में पूजा की सामग्री लेकर वह आराधना के लिए बैठा और पूजा का कार्य समाप्त करने के बाद द्वारिकादास शेर से लड़ने के लिये उस स्थान पर पहुँचा, जो उसके लिए तैयार किया गया था। उसके वहाँ पहुँचते ही उसके सामने शेर छोड़ा गया। मनोहरपुर के राजा का विश्वास था कि द्वारिकादास को सामने देखते ही शेर मार डालेगा। लड़ाई के इस दृश्य को देखने के लिए उस स्थान पर बादशाह भी आया था। शेर के सामने पहुँच कर द्वारिकादास ने उसके मस्तक पर चन्दन लगाया, उसके गले में माला डाली और उसके सामने बैठकर वह पूजा करने लगा। शेर द्वारिकादास के समीप चुपचाप खड़ा हो गया और अपनी जीभ से वह उसको चाटने लगा। द्वारिकादास निर्भीकता के साथ उसके सामने बैठा रहा। उपस्थित दर्शकों ने आश्चर्य के साथ यह दृश्य देखा। वादशाह के विस्मय का ठिकाना न रहा। इसके बाद बादशाह का आदेश पाकर द्वारिकादास शेर के सामने से उठ कर चला आया। शेर अपने स्थान पर चुपचाप खड़ा रहा। उसने द्वारिकादास पर किसी प्रकार का आवात नहीं किया। वादशाह ने अत्यन्त आश्चर्य के साथ इस दृश्य को देखा। उसकी समझ में न आया कि ऐसा क्यो हुआ। वह विश्वास पूर्वक सोचने लगा कि द्वारिकादास में कोई दैवी शक्ति है। उसने उसे बुला कर कहा- "आप जो चाहें मुझसे मॉग सकते हैं, मैं वही आप को दूंगा।" बादशाह की इस बात को सुनकर द्वारिकादास ने कहा- "इस विपदा से भगवान ने मेरी रक्षा की है। भविष्य में आप किसी को भी इस प्रकार की विपदा में न डालें, यही आप से मेरी प्रार्थना है।" द्वारिकादास अपने समय के अत्यन्त शूरवीर खानजहॉन लोदी के द्वारा मारा गया। ग्रंथों से मालूम होता है कि वे दोनों ही एक दूसरे के द्वारा मरे। यह घटना इस प्रकार है"द्वारिकादास और खानजहाँन लोदी में परस्पर मित्रता थी। कुछ कारणों से दिल्ली का वादशाह खानजहॉन से बहुत चिढ़ गया और उसने द्वारिकादास को खानजहॉन पर आक्रमण करने और उसको दरवार में लाने का आदेश दिया। बादशाह की इस आज्ञा को सुनकर द्वारिकादास बड़े असमंजस में पड़ गया। खानजहॉन उसका मित्र था। फिर वह उस पर कैसे आक्रमण कर 146