पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१६०

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राजपूत को युद्ध से भागना नहीं चाहिए। लेकिन तुममे ऐसा कहने का कुछ अभिप्राय है। में . इस युद्ध में अन्तिम समय तक रहूँगा। लेकिन तुम यहाँ से चले जाओ। क्योंकि तुम्हारे भी मारे जाने से हमारे पिता का वंश नष्ट हो जाएगा। केशरी सिंह के सामन्तों ने भी इस बात का समर्थन किया और उन लोगों ने केशरी सिंह को भी चले जाने की बात कही। लेकिन अपने सामन्तों के इस परामर्श का उत्तर देते हुए केशरी सिंह ने कहा- "युद्ध से हम दोनों भाइयों का चला जाना किसी प्रकार अच्छा नहीं हो सकता। इस युद्ध में यदि पराजय होती है तो उसमें मेरा मारा जाना अनुचित नहीं है। राज्य की रक्षा करते हुए बलिदान हो जाना राजा का कर्तव्य होता है। मेरे कारण मेरे भाई फतेह सिंह की हत्या हुई थी। इस युद्ध में लड़कर और प्राण देकर मुझे उसका प्रायश्चित करना चाहिये। लेकिन उदय सिंह का चला जाना आवश्यक है।" इसके बाद उदय सिंह युद्धस्थल से चला गया। मुगल-सेना के साथ राजपूतो ने शक्ति भर युद्ध किया। अन्त में युद्ध करता हुआ केशरी सिंह मारा गया। उसके बाद खण्डेला की सेना युद्ध-क्षेत्र से भाग गई। विजयी मुगल सेना ने खण्डेला पर अधिकार करके उदय सिंह को कैद कर लिया और उसे तीन वर्ष तक वन्दी बना कर अजमेर के दुर्ग में रखा। इसके बाद दो शेखावत सामन्तों ने खण्डेला राज्य को स्वतंत्र करने का इरादा किया। उन्होंने गुप्त रूप से अजमेर में कैदी उदय सिंह के पास सन्देश भेजाः "हम लोगों ने मुगलो से लड़कर खण्डला राज्य को स्वतंत्र कराने की योजना बनायी है। हमारे ऐसा करने से आपके ऊपर भयानक संकट पैदा होने की पूरी सम्भावना है। इसलिए आप पहले ही ऐसा करिए जिससे आपको बादशाह हमारे साथ शामिल न समझे। इसके लिए आप ऐसा कर सकते हैं कि हम लोगों की इस कोशिश की सूचना आप पहले से ही बादशाह के प्रधानमंत्री को कर दें। इससे वह आपके ऊपर सन्देह न करेगा।" इसके कुछ दिनो के बाद उदयपुर और कासली के दोनों सामन्तों ने अपनी सेनायें लेकर एकाएक खण्डेला में बादशाह की सेना पर आक्रमण किया और उसे परास्त करके उसके सेनापति देवनाथ को मार डाला। यह समाचार दिल्ली पहुंचा। उदय सिंह ने अपने मामन्तों के परामर्श के अनुसार पहले ही कार्यवाही कर ली थी। इसलिए दिल्ली के दरबार में किसी को भी उदयसिंह पर सन्देह पैदा न हुआ। खण्डेला में मुगल सेना के परास्त हो जाने के कारण बादशाह का प्रधानमंत्री फिर से खण्डला पर अधिकार करने की बात सोचने लगा। उसने इसके सम्बन्ध में उदय सिह से परामर्श किया। उसको उत्तर देते हुए उदय सिंह ने कहा"यदि आप मुझको कैद से छोड़ दें तो मैं खण्डेला को फिर बादशाह के अधिकार में करा सकता हूँ।" उदय सिंह की इस बात को सुनकर मुगलों के प्रधानमंत्री ने कहा- "में आपको कैद से छोड़ सकता हूँ। परन्तु आपकी सहायता से खण्डेला पर फिर से मुगलो का अधिकार हो जाएगा, इस पर कैसे विश्वास किया जाये?" प्रधानमंत्री की इस बात को सुनकर उदय सिंह ने कहा: "मेरे परिवार में वृद्ध माता को छोड़ कर और कोई नहीं है। मेरे स्थान पर आप मेरी माता को कैदी बना कर रख लीजिये।" प्रधानमंत्री इस पर राजी हो गया। उदयसिंह की माता कैदी के रूप मे अजमेर मे रखी गई और उदय सिंह को छोड़ दिया गया। उदयसिंह ने इस मौके पर बडी बुद्धिमानी से 152