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हो सकता है। इसलिए उसने केशरी सिंह को गुप्त रूप से सलाह दी कि फतेह सिंह पूरी तौर पर मनोहरसिंह के राजा के संकेतों पर काम कर रहा है और मनोहरपुर का राजा खण्डेला का परम शत्रु है। इसलिए किसी पड़यंत्र के द्वारा फतेह सिंह के जीवन का अन्त कर दिया जाये। परन्तु केशरी सिंह इसके लिए तैयार न हुआ। केशरी सिंह का दीवान अब भी उसी बात को सोचता रहा। उसने कावटा में दोनों भाइयों को एकत्रित करके मेल कराने की कोशिश की। फतेह सिंह कावटा में पहुंच गया। वहाँ पर आक्रमण करके फतेह सिंह को मार डाला गया। दीवान ने स्वयं तलवार लेकर आक्रमण किया था। संयोग और सौभाग्य की बात है कि फतेह सिंह के साथ-साथ दीवान भी जख्मी होकर मर गया। फतेह सिंह के मर जाने के बाद केशरी सिंह ने सम्पूर्ण खण्डेला पर अधिकार कर लिया। रेवासी नगर का कर अजमेर और खण्डेला का कर नारनोल जाता था। केशरी सिंह ने इसको भेजना वन्द कर दिया। सैयद अब्दुल्ला इन दिनों में दिल्ली के मुगल वादशाह का प्रधानमंत्री था। वह केशरी सिंह के इस व्यवहार से बहुत अप्रसन्न हुआ और उसको इसका बदला देने के लिए सैयद अब्दुल्ला ने दिल्ली से एक मुगल सेना भेजी। केशरी सिंह ने इन दिनों में अपनी शक्तियों को अधिक सुदृढ़ वना लिया था। बादशाह की फौज के आने का समाचार सुनकर केशरी सिंह ने समस्त शेखावत सामन्तों को सेनाओं के साथ बुलाया। उस समय जो सामन्त एकत्रित हुए, उनमें एक केशरी सिंह का परम शत्रु मनोहरपुर का सामन्त भी बादशाह की फौज के विरुद्ध लड़ने के लिए तैयार होकर आया। केशरी सिंह ने युद्ध की पूरी तैयारी की। मुगल सेना के साथ युद्ध करने के लिए वह रवाना हुआ। खण्डेला राज्य की सीमा पर बसे हुए देवली नामक स्थान पर दोनों ओर की सेनाओं का युद्ध हुआ। केशरी सिंह को बादशाह की सेना से पराजित होने की कोई आशंका न थी। लेकिन युद्ध शुरू होने के कुछ समय बाद उसकी वंशगत शत्रुता सजीव हो उठी। इस युद्ध में उसकी सहायता करने के लिए कुछ ऐसे सामन्त भी आये थे, जिनके साथ केशरी सिंह की कभी शत्रुता रह चुकी थी। इस प्रकार के लोगों में शत्रुता का भाव जागृत हुआ। कासली का सामन्त केशरी सिंह की सहायता के लिए आया था। वह एक शूरवीर योद्धा था और केशरी सिंह उस पर वहुत विश्वास करता था। वह इस युद्ध में मारा गया। दाता राज्य के लाडखानी वंश का सामन्त भी केशरी सिंह की सहायता के लिए आया था। उसने मौका पाकर केशरी सिंह के खासा नगर पर अधिकार कर लेने का विचार किया और वह युद्ध क्षेत्र से निकल कर उस तरफ चला गया। इस प्रकार की विरोधी परिस्थितियों के कारण युद्ध में केशरी सिंह का पक्ष निर्बल पड़ने लगा। इस भीषण समय में केशरी सिंह को अपने भाई फतेह सिंह की याद आयी। अपने पक्ष को कमजोर होते हुए देख कर भी केशरी सिंह को घबराहट नहीं हुई। वह बड़े साहस के साथ युद्ध करता रहा। उस समय दोनों तरफ से भयानक मारकाट हो रही थी। युद्ध की गति देख कर केशरी सिंह ने अपने भाई उदयसिंह को बुलाया और युद्ध छोड़कर तुरन्त चले जाने के लिए उससे उसने कहा। उदयसिंह इसके लिए तैयार न हुआ। उसके इनकार करने पर केशरी सिंह ने उसको समझाते हुए कहा- "मैं जानता हूँ कि एक 151