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सम्पत्ति का उपयोग किया गया और सीकर की रक्षा करने के लिए दस हजार सैनिकों की सेना का तुरन्त प्रबन्ध किया गया। इन दिनों में नन्दराम की सेना के अतिरिक्त कई सामन्तों की सेनायें सीकर पर आक्रमण करने के लिए आयी थीं। उन सब का युद्ध कौशल नन्दराम पर निर्भर था। साथ के सामन्तों से परामर्श करके नन्दराम ने सीकर में युद्ध आरम्भ किया। ____ लक्ष्मण सिंह ने अपनी रक्षा के लिए दस हजार सैनिकों की व्यवस्था कर ली थी। उसके दीवान के साथ नन्दराम की जो गुप्त बातचीत हुई थी, उसे वह जानता था और उसी के आधार पर दस हजार सैनिकों की नयी सेना की व्यवस्था की गई थी। नन्दराम की तरफ से युद्ध आरम्भ हुआ, उसको कई दिन बीत गये। लेकिन वह युद्ध इस प्रकार चलता रहा कि सीकर को कोई क्षति न पहुँच सकी। इसके बाद नन्दराम ने जयपुर राज्य के मंत्री के पास एक पत्र भेजा। वह मंत्री नन्दराम का भाई था। उसने पत्र में लिखा- "वर्तमान परिस्थितियों में सीकर को परास्त करना बहुत कठिन मालूम होता है। इस पर भी सीकर का अधिकारी लक्ष्मण सिंह जयपुर की अधीनता स्वीकार करके दण्ड में दो लाख रुपये देने के लिए तैयार है। हमारी समझ में दो लाख रुपये लेकर और सीकर को अधीन बनाकर युद्ध रोक देना अधिक अच्छा है।" नन्दराम ने अपना यह पत्र जयपुर के मंत्री के पास भेज दिया। उसके बाद उसने जयपुर से आने वाले उत्तर की प्रतीक्षा नहीं की। उसने पत्र मे लिखने के अनुसार दो लाख रुपये जयपुर राज्य के लिए और एक लाख रुपया अपने लिए लेकर सीकर छोड़ दिया। इस प्रकार देवीसिंह के स्नेह पूर्ण व्यवहारों के कारण सीकर को इस सम्पत्ति के सिवा और कोई विशेप क्षति नहीं उठानी पड़ी। ___ खण्डेला के राजा नरसिंह ने आमेर के राजा को कर देने से इनकार किया था। लेकिन प्रताप सिह ने किसी प्रकार उसे अदा करके आमेर के राजा का सन्तोप प्राप्त किया था। नरसिंह का कर न देना आमेर नरेश को सहन नहीं हुआ। उसने नरसिंह और प्रताप सिंह से संघर्प पैदा करने की चेष्टा की। जयपुर राज्य की सहानुभूति अपने पक्ष में समझने के कारण प्रतापसिंह सम्पूर्ण खण्डेला राज्य का अधिकार प्राप्त करने की चेष्टा करने लगा। उसने जयपुर राज्य के सेनापति नन्दराम के पास एक पत्र भेजा। उसमें उसने लिखा- "खण्डेला राज्य की जितनी आमदनी है। उसका सम्पूर्ण कर मैं अकेले जयपुर को देने के लिए तैयार हूँ। लेकिन सम्पूर्ण खण्डेला का अधिकार मुझे दिला दिया जाये। जयपुर राज्य की आज्ञानुसार मैं सदा अपनी सेना के साथ तैयार रहूँगा। मेरे लिखने के अनुसार खण्डेला का जो अभिपेक मेरे लिए किया जाएगा, उसमें बहुत-सा धन जयपुर के राजा को उपहार में दिया जाएगा।" सेनापति नन्दराम ने प्रताप सिंह के इस पत्र को पढ़कर उसकी प्रार्थना को स्वीकार कर लिया और उसी समय से वह सम्पूर्ण खण्डेला राज्य की सनद प्रताप को दिये जाने की चेष्टा करने लगा। उन दिनो मे नाथावत वंश का सरदार सामोद का सामन्त रावल इन्द्रसिंह जयपुर मे रहता था। उसे जब मालूम हुआ कि नरसिंह के अधिकार का राज्य प्रताप सिंह को देने के लिए जयपुर मे तैयारी हो रही है, तो उसने गुप्त रूप से नरसिंह को अपने पास बुलाया और सभी बातें बताकर उससे कहा- "सम्पूर्ण खण्डेला राज्य का अधिकार राजा जयपुर की तरफ 162