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पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१६९

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भयानक अत्याचार करते रहे। इसके बाद उनका दल उदयपुर को छोड़कर सिंहाना, झुंझुनूं और खेतड़ी आदि के सामन्तों पर आक्रमण करने के लिए चला। मराठों के चले जाने के बाद भी खण्डेला के नरसिंह और प्रतापसिंह सुख की नींद सो नहीं सके। वहाँ के लोगों ने अपना सब कुछ बेच कर मराठों को दे दिया। उनके जाते ही आमेर के राजा ने खण्डेला से कर मॉगा। बालक प्रताप इनकार कर सकने की दशा में न था। उसके नगरों में लोगों के पास खाने के लिए जो कुछ अनाज रह गया था, उसका अधिकांश भाग प्रताप सिंह ने आमेर के राजा को दे दिया। परन्तु नरसिंह ने कुछ न दिया। इन दिनों में शेखावत वंश की एक शाखा में सामन्त देवीसिंह ने ख्याति प्राप्त की थी। वह कासली के राव तिरमल्ल का वंशज था और सीकर का वह अधिकारी था। उसने खण्डेला राज्य की अधीनता में रह कर भी लोहागढ़, खोह और इस प्रकार के दूसरे पच्चीस नगरों और दुर्गो पर अधिकार कर लिया था। इसके बाद उसने रिवासो पर अधिकार करने की चेष्टा की थी। परन्तु मृत्यु हो जाने के कारण वह अपनी अभिलापा पूरी न कर सका। देवीसिंह के कोई लड़का न था। इसलिए अपने जीवन-काल में ही उसने शाहपुरा के सामन्त के लड़के लक्ष्मण सिंह को गोद लेकर अपना उत्तराधिकारी बना लिया था। शेखावाटी के निर्बल सामन्तों के ग्राम और नगरो पर अधिकार कर लेने के कारण देवीसिंह से आमेर का राजा बहुत अप्रसन्न हो गया था। इसलिए उसने मंत्री दोलत राम के भाई नन्दराम हलदिया को देवीसिंह के नगरों पर आक्रमण करने का आदेश दिया। नन्दराम ने वहाँ आक्रमण करके लक्ष्मण सिंह को आमेर की अधीनता में लाने की तैयारी की। इस समय जिन सामन्तों के ग्रामो और नगरों पर देवीसिंह ने अधिकार कर लिया था, वे सभी देवीसिंह के विरुद्ध नन्दराम हलदिया के पास जाने लगे। खण्डेला के राजा भी उसके पास पहुंचे। कासली और विलारा आदि के पाचवत सामन्त भी नन्दराम के पास पहुंच गये। देवीसिंह ने जिनको क्षति पहुँचाई थी,वे सभी उसके दत्तक पुत्र लक्ष्मण सिंह के विरुद्ध होने वाले आक्रमण में सहायता करने के लिए तैयार हो गये। सीकर का अधिकारी देवीसिंह भी साधारण दूरदर्शी न था। उसने पहले से ही अपने पक्ष में बहुत कुछ कर रखा था। उसने आमेर राज्य के दरबारी सदस्यों के साथ पहले से ही सम्बन्ध जोड़ रखा था। वह इस बात को समझता था कि इन लोगों के साथ अनुराग पूर्ण सम्बन्ध कायम रहने से हमारा भविष्य संकटपूर्ण न बन सकेगा। देवीसिंह के साथ जयपुर के मंत्री और उसके भाई का स्नेहपूर्ण सम्वन्ध था। यह सब देवीसिंह ने अपने जीवनकाल में ही कर लिया था। नन्दराम अपनी सेना के साथ सीकर पर आक्रमण करने के लिए जव गया तो एक चन्द्रावत सामन्त, जो सीकर का दीवान था, लक्ष्मण सिंह का प्रतिनिधि होकर नन्दराम के पास गया और उसने बड़ी नम्रता के साथ स्वर्गीय देवीसिंह का जिक्र करते हुए उसके दत्तक पुत्र लक्ष्मण सिंह की परिस्थितियाँ उसके सामने रखीं। नन्दराम ने उससे कहा- "आप जो चाहते हैं,उसका एक ही रास्ता है। आप एक बड़ी सेना को एकत्रित करके सीकर की रक्षा करने के लिये तैयार हों। उस समय मेरे ऊपर किसी प्रकार का दोपारोपण न हो सकेगा।" सीकर के दीवान की समझ में यह आ गया। देवीसिंह ने अनेक नगरों को लूटकर वहुत-सा धन एकत्रित किया था। वह सम्पत्ति लक्ष्मण सिंह के अधिकार मे थी। इस समय उस