पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

अध्याय-60 जयपुर राज्य व शेखावाटी में युद्ध सन् 1798 और 1799 ईसवी में दीनाराम बोहरा जयपुर का प्रधानमंत्री था। खण्डेला में आशाराम की सफलता को देखकर वह बहुत प्रसन्न हुआ और सिद्धानी सामन्तों से कर वसूल करने के लिए वह राजधानी से शेखावाटी के लिये रवाना हुआ। आशाराम की सेना के साथ जयपुर में दीनाराम की भेंट हुई। इसके बाद उसने सिद्धानी सामन्तों के नगर परशुरामपुर में पहुँच कर मुकाम किया और वहाँ से उसने समस्त सामन्तों के नाम पर कर अदा करने के लिए पत्र भेजे। इसके साथ-साथ उसने प्रत्येक सामन्त के यहाँ कर वसूल करने के लिए अश्वारोही सेनायें भेजी और उन सेनाओं के अधिकारियों को उसने आदेश दिया कि वे अलगअलग सामन्तों के पास जाकर कर वसूल करें। उन सामन्तों को जो पत्र भेजे गये, उनमें यह भी लिखा गया कि कर देने में विलम्ब होने पर दण्ड निर्धारित धन अलग से वसूल किया जाएगा और जिन सामन्तों से कर वसूल न होगा, उनके विरुद्ध सैनिक आक्रमण होगा। जयपुर के प्रधानमंत्री का इस प्रकार पत्र पाने पर समस्त सिद्धानी सामन्त अत्यन्त क्रोधित हो उठे और उस पत्र को अपमान जनक समझकर सबके हस्ताक्षरों से एक पत्र प्रधानमंत्री के पास भेजा गया। उसमें लिखा गया कि हम लोगों के इस पत्र को पाकर यदि प्रधानमंत्री अपनी सेना के साथ झुंझुनूं तुरन्त न चला जाएगा तो उसका नतीजा बहुत खराब होगा। लेकिन यदि वह इस पत्र को पाते ही उसी समय झुंझुनूं चला गया तो यहाँ के सामन्तों से कर के जो दस हजार रुपये एकत्रित हुए हैं, वे तुरन्त उसे दे दिए जायेंगे। इस पत्र में शेखावाटी के सभी सामन्तो ने हस्ताक्षर किये। परन्तु खण्डेला के कैदी राजा के भाई बाघसिंह ने उसमें अपने हस्ताक्षर नही किये। उसका कहना था कि संधि के बाद जिस प्रकार हम लोगों ने आमेर के राजा के साथ नेकियाँ की हैं और नन्दराम के अत्याचारो को दमन करने के लिए जिस प्रकार हम लोगो ने जयपुर की सेना का साथ दिया है, उन सब का बदला जयपुर राज्य से हमको अत्याचारों के रूप में मिला है। इसलिए ऐसे राजा के पास जो पत्र भेजा जा रहा है, उस पर मैं हस्ताक्षर नहीं करूंगा। क्योंकि हम सब लोगों के साथ जयपुर के राजा ने जो संधि की थी, उसका उसने पूर्ण रूप से उल्लंघन किया है। संधि के अनुसार कर वसूल करने के लिए राजा की सेना को आने का अधिकार नहीं था। प्रधानमंत्री ने कर वसूल करने के लिए सामन्तों को जो पत्र भेजा है, वह पूर्ण रूप से अपमान जनक है। बाघसिंह ने सामन्तों के उस पत्र पर हस्ताक्षर नहीं किये और वह जयपुर की सेना के साथ युद्ध करने के लिए तैयारी करने लगा। इसी अवसर पर खेतड़ी के पॉच सौ राजपूत उसकी सहायता के लिए पहुंच गये। बाघसिंह ने उन लोगो की मदद से सीकर और फतेहपुर 170