- दिया। दुर्ग का फाटक खुलते ही अपने पुत्र विजय राव के साथ सेना को लेकर तनू ने आक्रमणकारियों पर एक साथ भयानक आक्रमण किया। उस समय की भीपण मार-काट से शत्रु की सेना परास्त होकर युद्ध के क्षेत्र से भाग गयी। वराहा लोगों के युद्ध-क्षेत्र से भागते ही म्लेच्छ लोग भी बड़ी तेजी के साथ इधर-उधर भागे। युद्ध में विजयी होकर तनू ने शत्रुओं के शिविर पर आक्रमण किया और उनके साथ की समस्त सम्पत्ति और सामग्री लूट ली। मुलतान और लंगा लोगों की सेना के पराजित हो जाने पर बूता राजपूतों के राजा जीजू ने विवाह के लिए तनू के पास नारियल भेजा। इस विवाह के पश्चात् मुलतान के राजा के साथ तनू की मैत्री हो गयी। तनू से पाँच लड़के पैदा हुए- 1.विजयराव 2. मुकुर 3. जयतुंग 4. आलन और 5. राखेचा। दूसरे पुत्र मुकुर के माहपा नाम का एक लड़का पैदा हुआ। माहपा के महोला और दिकाऊ नामक दो वालक पैदा हुए। दिकाऊ ने अपने नाम पर एक झील खुदवायी। उसके वंशज मुकुर सुतार के नाम से सम्बोधित किये जाते हैं। तीसरे पुत्र जैतुंग के दो वालक पैदा हुए-रलसी और चोहर । रत्नसी वीकमपुर में जाकर रहने लगा। चोहर के कोला और गिरिराज नामक दो वालक पैदा हुए। इन दोनों ने अपने-अपने नामो पर कोलासर और गिर राजसर नामक दो नगर वसाये। चौथे पुत्र आलन के चार लड़के पैदा हुए-1. देवसी 2. त्रिपाल 3. भवानी और 4. राकेचा। देवसी के वंशज ऊँटों के व्यवसायी हो गये और राकेचा के वंशजों ने व्यवसाय आरम्भ किया। इसलिए भविष्य में ये ओसवाल के नाम से प्रसिद्ध हुए। तनू को विजसनी देवी के आशीर्वाद से एक स्थान पर बहुत बड़ी छिपी हुई सम्पत्ति मिली। तनू ने उस सम्पत्ति से एक विशाल दुर्ग वनवाया और उसका नाम विजनोट दुर्ग रखा। उस दुर्ग मे उसने सन् 757 ईसवी में उस देवी की मूर्ति की स्थापना की। अस्सी वर्ष तक राज्य करने के बाद उसकी मृत्यु हो गयी। 834 ईसवी में विजयराव अपने पिता के सिंहासन पर बैठा और उसके बाद उसने अपने वंश के परम शत्रु वराह जाति से युद्ध करने का निश्चय किया और वराह लोगों पर आक्रमण करके उनकी सारी सम्पत्ति लूट ली। सन् 836 ईसवी में बूता वंश की रानी से देवराज नामक एक बालक पैदा हुआ। विजय राव से बदला लेने के लिए बराह और लंगा जाति के लोग आपस मे मिल गये और विजय राव पर आक्रमण किया। उस युद्ध मे विजय राव ने उनको पराजित किया। उस दशा में युद्ध से निराश होकर इन दोनों जातियों के लोगों ने पड्यंत्र करके विजयराव के सर्वनाश का विचार किया। उन लोगों ने इन दिनों की शत्रुता को भुलाकर सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार आरम्भ किया और वराह लोगों के राजा ने विजयराव के लड़के देवराज के साथ अपनी लड़की के विवाह का प्रस्ताव रखा। विजयराव को उन लोगो के पड्यंत्र का कुछ भी ज्ञान न था। इसलिए उसने विवाह के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और अपने वंश के आठ सौ आदमियों को लेकर अपने पुत्र देवराज के साथ विजयराव राजा वराह की राजधानी भटिण्डा मे पहुँच गया। उसके वहाँ पहुँचते . 13
पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१९
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