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सहायता के लिये सिद्धानी के सामन्तों ने कुछ धन एकत्रित किया और उस धन से पाँच रुपये प्रतिदिन के हिसाब से उनको दिये जाने लगे। सन् 1814 ईसवी में शिवनारायण मिश्र जयपुर का प्रधानमंत्री था। उसी वर्ष पठानों के सरदार अमीर खाँ ने जयपुर के राजा से नौ लाख रुपये की मांग की। पाँच लाख रुपये जयपुर के खजाने से और शेप चार लाख रुपये सिद्धानी के सामन्तों से-कुल नौ लाख रुपये की मॉग अमीर खाँ की तरफ से हुई। जयपुर के राजा ने प्रधानमंत्री शिवनारायण मिश्र से इस विषय में परामर्श किया। जयपुर के खजाने की परिस्थिति ऐसी न थी कि जिससे अमीर खाँ को नौ लाख रुपये दिये जा सकते। इसलिए प्रधानमंत्री शिवनारायण ने लक्ष्मणसिंह से इस रकम को वसूल करने की आशा की। सीकर के सामन्त लक्ष्मणसिंह ने जयपुर की अवहेलना करके खण्डेला पर आक्रमण किया था और अमीर खाँ की सहायता से उसने वहाँ पर अधिकार कर लिया था। लेकिन जयपुर के राजा से उसको अभी तक खण्डेला के शासन की सनद न मिली थी। इस सनद को प्राप्त करने के लिए लक्ष्मण सिंह ने कई बार चेष्टा की थी। परन्तु सनद प्राप्त करने में वह असफल रहा था। प्रधान मंत्री शिवनारायण मिश्र ने इस समय सनद के नाम पर लक्ष्मण सिंह से इस लम्बी रकम को लेने का प्रयत्न किया। उसने अपना दूत भेजकर लक्ष्मण सिंह से प्रस्ताव किया कि यदि वह स्वय पाँच लाख रुपये दे और सिद्धानी के सामन्तों से चार लाख रुपये एकत्रित कर के कुल नौ लाख रुपये जयपुर राज्य की तरफ से अमीर खॉ के पास पहुँचा दे तो उसको खण्डेला के शासन की सनद दे दी जायेगी। जयपर के दत ने लक्ष्मण सिंह के पास जाकर अपने प्रधानमंत्री का प्रस्ताव उपस्थित किया। उसको सुनकर लक्ष्मण सिंह तैयार हो गया। उन दिनों में अमीर खॉ राहोली में रहा करता था। लक्ष्मण सिंह ने वहाँ जाकर पाँच लाख रुपये अपने पास से और चार लाख रुपये सिद्धानी के सामन्तों से एकत्रित करके उसको दिये और नौ लाख रुपये की रसीद अमीर खाँ से लेकर जब वह जयपुर में राजा के यहाँ आया तो जयपुर नरेश ने खण्डेला के शासन की सनद उसको दे दी। लक्ष्मण सिंह इस सनद को पाकर बहुत प्रसन्न हुआ। उसने राजधानी में जयपुर के राजा को सत्तावन हजार रुपये खण्डेला के एक वर्ष के कर के रूप मे पेशगी में दिये। इस रकम को लेकर राजा जगत सिंह ने खण्डेला का वार्षिक कर स्वीकार कर लिया। इसके बाद अभय सिंह और प्रतापसिंह का पैतृक अधिकार खण्डेला से सदा के लिए खत्म हो गया। कुछ दिन पहले की बात है, एक ब्राह्मण पुरोहित ने जयपुर के राजा से खण्डेला का पट्टा ले लिया था और उन दिनो में उसने खण्डेला के छोटे-छोटे सामन्तो पर भयानक अत्याचार किये थे। इन दिनों मे खण्डेला पर लक्ष्मण सिंह का अधिकार हो जाने से उस ब्राह्मण पुरोहित का पट्टा बेकार हो गया। इसलिए उसने लक्ष्मण सिंह के विरुद्ध एक पडयंत्र रचने का काम आरम्भ किया। वह ब्राह्मण पुरोहित अत्यन्त चतुर और पड़यंत्रकारी था। इन दिनो में शिवनारायण मिश्र जयपुर राज्य का प्रधान मंत्री था। इसलिए ब्राह्मण होने के नाते उसने प्रधानमत्री शिवनारायण मिश्र से लाभ उठाने की चेष्टा की। उसके पडयत्र मे फँस जाने के कारण प्रधान मत्री इस प्रकार अपराधी बन गया कि उसने आत्महत्या करके अपना जीवन समाप्त कर लिया। 182