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पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१९४

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साधु ने अपने परिवार के छोटे अधिकारियों को सिंहाना, झुंझुनूं और सूर्यगढ़-जिसका प्राचीन नाम उछ:ड़ा था इत्यादि कई नगर और ग्राम दिये थे। लेकिन खेतडी के अभय सिंह ने 'सिंहाना और उसके एक सौ पच्चीस ग्रामों पर अधिकार कर लिया था। साधु के वंशजों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ती गयी। इसलिए उसका राज्य भी छोटे-छोटे टुकड़ों में लगातार विभाजित होता गया। सीकर के सामन्त लक्ष्मण सिंह की तरह अभय सिंह ने भी अपने राज्य के विस्तार की चेष्टा की। उसने अपने वंश के अधिकारियों पर आक्रमण किया और उनके अधिकार के ग्रामों और नगरों पर अधिकार करने में उसने भयानक अत्याचार किये। साधु के सबसे छोटे लड़के पहाड़ सिंह के भूपाल नाम का एक लड़का पैदा हुआ। लुहारू के युद्ध मे भूपाल सिंह के मारे जाने पर पहाड़ सिंह ने अपने भाई के पुत्र खेतड़ी के सामन्त वावसिंह के सबसे छोटे लड़के को गोद लिया। पहाड़ सिंह के मर जाने के बाद गोद लिया हुआ बालक उसका अधिकारी हुआ। उसकी अवस्था उस समय बहुत कम थी। इसलिए वह अपने पिता के यहाँ जाकर रहने लगा। इसके बारह वर्ष के बाद बाघसिंह की मृत्यु हुई। उसके अनुचित आचरणों के कारण सभी लोग उससे अप्रसन्न रहते थे। उसके मर जाने के वाद किसी ने भी उसके लिए दुःख प्रकट नहीं किया। बल्कि शवदाह के समय उसके वंश और परिवार के लोग उसके प्रति अपनी घृणा प्रकट करते रहे। रायसलोत और सिद्धानी लोगों का वर्णन करने के वाद लाडखानी लोगों के सम्बन्ध में यहाँ पर कुछ ऐतिहासिक प्रकाश डालना आवश्यक मालूम होता है। लाडखानी शब्द का अर्थ प्यारा प्रभु होता है। इस अर्थ के आधार पर लाडखानी लोगों की मर्यादा का सही अनुमान नहीं किया जा सकता। क्योंकि अपने आचरणो और कार्यो से लाडखानी लोग राजस्थान में बहुत बदनाम थे। रायसाल के बड़े लड़के के नाम मे खाँ शब्द का प्रयोग क्यों किया गया और उसके छोटे लड़के का नाम ताज खॉ क्यों रखा गया, इसके सम्बन्ध में हम कुछ नहीं जानते। रायसाल के लड़के लाडखाँ ने दातारामगढ़ पर अधिकार कर लिया था। यह नगर मारवाड़ राज्य की सीमा पर बसा हुआ और जयपुर राज्य की अधीनता में था। लाडखाँ का पिता बादशाह के दरवार में एक सम्मानपूर्ण स्थान रखता था। सम्भव है कि उसी आधार पर लाडखों को यहाँ का अधिकार मिल गया हो। लाडखॉ का अधिकार तप्पनोसल पर भी हो गया था। सव मिलाकर अस्सी नगर और ग्राम उसके अधिकार में थे। ये ग्राम और नगर पहले मारवाड़ और बीकानेर के राज्य में शामिल थे। लाडखानी लोग उनके राज्यों में किसी प्रकार लूटमार न करें, इसलिये ये ग्राम और नगर लाडखों को दे दिये गये थे। लाडखानी लोग पिडारियों की तरह लूट-मार करते थे। वे सैकड़ों और हजारों की संख्या मे एकत्रित होकर जहाँ जाते थे, आक्रमण करके लूट लेते थे और अपने स्थानों को भाग जाते थे। जयपुर का राजा कभी-कभी इन लोगों से कर वसूल करने की कोशिश करता था। परन्तु उसे सफलता न मिलती थी। इन लोगों का रामगढ़ नामक एक बहुत मजबूत दुर्ग था। उसी में वे लोग भागकर पहुंच जाते थे। यह दुर्ग सभी प्रकार सुरक्षित था लेकिन अमीर खॉ जब इन लोगो पर आक्रमण करता था तो ये लोग उसे वहुत सा धन देकर अपनी रक्षा करते थे। इन लाडखानी लोगो ने अमीर खॉ को बीस हजार रुपये वार्पिक कर देना स्वीकार किया था। 186