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13. कानोढ़ अथवा कानोद | डी वाइन ने इन पर अधिकार करके मुरतजा खाँ 14. नारनोल को लार्ड लेक की स्वीकृति से दिया था। 15 कोटपूतली सन् 1803 और 4 के युद्ध में लार्ड लेक ने मराठों से लेकर खेतड़ी के अभय सिंह को दे दिया था। 16. टोंक 1 राजा माधव सिंह ने लार्ड हेस्टिंग्स के द्वारा अमीर खाँ की 17. रामपुर । प्रधानता में होलकर को दिया। यहाँ पर यह समझने की जरूरत है कि ऊपर लिखे हुए जिले, जो जयपुर राज्य के दूसरे राज्यों में गये, ढूंढाड राज्य की पूर्ति करते थे और उनमें से अधिकॉश पहले किसी समय मुगल बादशाह के अधिकार में थे। बादशाह ने उनके शासन का अधिकार जयपुर के राजा को दे रखा था। लगभग आधी शताब्दी पहले राजा पृथ्वी सिंह के शासन काल में आमेर राज्य और उसके सामन्तों की आमदनी मिलाकर कुल सत्तर लाख रुपये थी। राजा प्रताप सिंह के शासन के अन्तिम वर्ष सन् 1802 ईसवी में यह आमदनी उनासी लाख रुपये थी। राजा जगत सिंह के समय सम्वत् 1885 सन् 1802-03 ईसवी में जयपुर राज्य की खालसा अथवा कर-सम्बन्धी राजकोष की आय इस प्रकार थी कर सम्बन्धी अथवा राजा के प्रवन्ध के द्वारा ... .. 2055000 रुपये देवरा ताल्लुका, अन्त:पुर के व्यय के लिए आय. .... 500000 रुपये राज दरबार के नौकरों के लिए होने वाली आय . . . 300000 रुपये मन्त्रियों और दीवानी के अधिकारियों के लिए ... ... .. 200000 रुपये सिलहपोप नामक सेना की जागीरों से ......... ... .. 150000 रुपये दस पैदल और सवार सेनाओं की जागीरों से ... .. 514000 रुपये सामन्तों की जागीरों की आय ........ 1700000 रुपये ब्राह्मणो को दी हुई भूमि की आय ............ ..... 160000 रुपये कृपि कर और वाणिज्य कर के द्वारा .................. 1900000 रुपये राजधानी की कचहरी,नगर चुङ्गी आदि से ... ... ..... 215000 रुपये टकसाल के द्वारा . 60000 रुपये हुंडी भाड़ा इत्यादि से ............... 60000 रुपये आमेर की फौजदारी के जुर्माने से ............. 12000 रुपये जयपुर नगर की फौजदारी कचहरी से............ 8000 रुपये कचहरी के साधारण जुर्मानों से .. ..... .... ... 16000 रुपये सब्जी मण्डी के द्वारा..... .. .... .. ... ... . 3000 रुपये शेखावाटी राज्य की आय ... . . ... .. .. ... . 350000 रुपये राजावत और जयपुर के अन्य सामन्तों से ... ..... .. 30000 रुपये हाड़ौती के सामन्तों से ..... ... 20000 रुपये कुल जोड़ 8183000 रुपये 191