पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२०२

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मोरा-देवनशाह से पूर्व की तरफ अठारह मील की दूरी पर बसा हुआ है। मोरध्वज नामक चौहान राजा ने इसकी प्रतिष्ठा की थी। आभानेर-यह नगर लालसोट से तीन कोस पूर्व की तरफ है। यह नगर बहुत प्राचीन है और यहाँ पर कभी एक चौहान राजा की राजधानी थी। भानगढ़-यह नगर थोलाई से पाँच कोस की दूरी पर है। यह नगर और इसका प्रसिद्ध दुर्ग-दोनों नष्ट हो चुके है। कुशवाहा राजाओं के अभ्युदय के पहले ढूँढाड के प्राचीन नगर के द्वारा इसका निर्माण हुआ था। _अमरगढ़-खुशालगढ़ से तीन कोस की दूरी पर है। नाग वंशियों के द्वारा इसका निर्माण हुआ था। बीरात-माचेड़ी मे बूसे से तीन कोस के फासले पर है। कहा जाता है कि पाण्डवों के द्वारा वह बसाया गया था। पाटन और गनीपुर-इन दोनों को दिल्ली के प्राचीन तोमर राजाओं ने बसाया था। खुरोर अथवा खण्डार-रणथम्भौर के करीब है। ओरगिर-चम्बल के किनारे पर है। आमेर, अम्बेर अथवा अम्बेश्वर-यह नगर इन तीनों नामों से प्रसिद्ध रहा है। यहाँ पर शिवजी का एक प्राचीन मन्दिर है, उसमें एक कुण्ड है और कुण्ड के मध्य मे शिवलिङ्ग की मूर्ति है। कुण्ड के जल से यह मूर्ति लगभग आधी डूबी है। सर्व साधारण में इस प्रकार का एक विश्वास भरा हुआ है कि शिवलिङ्ग की मूर्ति जल में जब डूब जाएगी,जयपुर राज्य का उस समय पतन हो जायेगा। * मृत्ल ग्रन्थ मे शेखावाटी का इतिहास जयपुर राज्य से अलग नहीं है, इसलिए टाड साहब ने शेखावाटी के इतिहास का अन्त इस रूप में किया है-अनुवादक 194