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पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२१०

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युद्ध में मारा गया। राजस्थान के छत्तीस वंशी राजपूत उसकी मृत्यु के दिन उसकी समाधिमन्दिर में एकत्रित होते है। मरुस्थली में गांगा का नाम आज तक प्रसिद्ध है। गोगा के घोड़े का नाम जवाटिया था।* इसीलिए अधिकांश राजपूत अपने उस घोड़े का नाम जवादिया रखा करते हैं, जो युद्ध में काम आता है। ऐसा मालूम होता है कि ऊपर जिस युद्ध का वर्णन किया गया है, वह उस समय हुआ हो, जब महमूद ने भारत के बाकी हिस्सों को जीतने की चेष्टा की थी। उस समय सुलतान महमृद अपनी फौज लेकर मरुभूमि में गया होगा और अजमेर पर उसके आक्रमण करते ही चौहान राजा अपना स्थान छोड़कर भाग गया हो, यह सम्भव हो सकता है। उस दशा में महमूद की सेना ने अजमेर और उसके आस-पास के नगरों को लूटकर विध्वंस और विनाश किया हो, इसका अनुमान किया जा सकता है। उस समय राजपूत राजा ने गढ़ बीटली नामक दुर्ग की रक्षा की। वहाँ पर परास्त और घायल होकर महमूट नाडोल की तरफ भागा और वहाँ पहुँचकर ठसने लूटमार की। इसके पश्चात् उसने नहरवाला पर अधिकार कर लिया। मुलतान महमूद ने निन ग्रामों और नगरों पर अधिकार किया था, वहाँ उसने भयानक अत्याचार किये। इसलिये वहाँ के रहने वाले सभी लोग महमूद के शत्रु हो गये। उस दशा में महमूद को वहाँ के पश्चिमी मरूभूमि के रास्ते से होकर भागना पड़ा और वह रास्ता उसकी फौज के लिए अत्यन्त भयानक हो गया। कवि चन्द ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ में वीसलदेव के शासन का समय सन् 865 लिखा है। परन्तु यह किसी प्रकार सही नहीं मालूम होता। उस समय के समस्त हिन्दू राजाओं में वीमलेव का नाम अधिक प्रसिद्ध था। उसके इस प्रताप और गौरव को सुनकर सुलतान महमूद लुटेरों की एक बहुत बड़ी फौज लेकर इस देश में आया था। उस युद्ध में अनहिलवाड़ा के चालुक्य राजा को छोड़कर सभी राजाओं ने वीसलदेव का साथ दिया था। क्योंकि वे सभी उसकी प्रधानता में शासन करते थे। उस युद्ध में शामिल होने के लिए कितने राजा अपनी सेनाओं के साथ वीसलदेव की तरफ आये थे, उनका वर्णन चन्द कवि ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ में इस प्रकार किया है। गोयलवाल जंत पर विश्वास करके अजमेर के राजा ने कहा-"मैं आपकी राजभक्ति पर विश्वास करता हूँ। चालुक्य राजा को कहाँ आश्रय मिलेगा।" यह कहकर वीसलदेव ने रादपतों के एक ऐतिहामिक ग्रन्थ में लिखा है कि गोगा चौहान के पहले कोई लड़का नहीं था। टससे यह चिन्तित रहा करता था। एक दिन उसकी कुलदेवी ने गोगा की दो जव दिये।गांगा ने टनमें एक जब अपनी रानी को खिलाण और दृप्सरा अपनी वोड़ी को जय खाने में उस यांडी के एक बच्चा हुआ।जब खाने मे उत्पनि होने के कारण घोड़ी के टम यचं का नाम गोगा ने जवा दिया रखा। यह नवादिया घोड़ा टतना ही प्रसिद्ध हुआ, नितना कि गांगा चाहान स्व्यं विख्यत दुआटटयपुर कंगणा ने काठियागड़ का एक घोड़ा मुझे उपहार में दिया थ,इसका नाम भी जवा दिया था। वह बांडा देखने में बहुत साधारण था परन्तु युद्ध में वह अपनी अदभुत शक्ति त्र प्रदर्शन करता था। टन दिनों में युद्ध में गिक्षित घोड़े को बहुत महत्व दिया जाना था लेकिन अब तम प्रकार के बाड़े नहीं है। राजा वीसलदेव ने एक हजार वर्ष पहले इन मरांवर को बनणगावह आज तक इसी नाम से प्रसिद्ध है। यादगाह नहाँगीर ने इस मरांवर समीर एक रानाप्रमाद बनवाया था और इंगलैंड के बादशाह प्रथम जेन्म के भने हुए दृत की उसने अपने यहाँ इसी प्रासाद में ठहराण था। 202