पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२११

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अपनी सेना के साथ अजमर नगर से रवाना होकर वीसली नामक सरोवर के तट पर पहुँचकर मुकाम किया और अपने अधिकारी सामन्त राजाओं को सेना के लिए संदेश भेजा। मन्डोर के मोहन सिंह परिहार ने सेना के साथ वहाँ आकर वीसलदेव की वन्दना की उसके बाद गहिलोत तोमर के साथ पावासर और मेवात के राजा मेव के साथ गौड़ जाति के राम और दूसरे नरेश आये। द्रोणपुर के मोयल राजा ने कर भेजकर अपने न आ सकने के लिये क्षमा प्रार्थना की। दोनों हाथ जोड़े हुए वालोज राजा आया। वामूनी के राजा ने सिन्ध में तैयारी की और वहाँ पर आकर पहुँचा। भटनेर से नजर आयी। ठट्ठा और मुलतान से नालवली आकर उपस्थित हुए। देरावर से भूमिया और भाटी लोग वहाँ आकर एकत्रित हुये। मालनवास के यादव भी वहाँ पर आए। मौर्य, वड़गूजर और अन्तर्वेद के कछवाहा लोग भी वहाँ पर पहुँच गये। मीणा लोगों ने आकर वीसलदेव के चरणों की वन्दना की। तखतपुर की सेना वहाँ पर आकर उपस्थित हुई। निर्माण, डोडा, चन्देल और दाहिमा के राजाओं के साथ उदय, प्रमार आदि राजा लोग अपने घोड़ों पर बैठकर वहाँ पर पहुँच गये। चन्द कवि ने आपने वाले राजाओं में चित्तौड़ के गहिलोत राजा का भी उल्लेख किया है। चित्तौड़ का राजा अजमेर के राजा के साथ मैत्री का सम्वन्ध रखता था। उस समय चित्तौर के सिंहासन पर तेजसिंह था। वारहवीं शताब्दी में वीसलदेव के वंशज दिल्ली के राजा पृथ्वीराज के साथ तेजसिंह के पौत्र समरसिंह की मित्रता थी और तेजसिंह ने जिस प्रकार वीसलदेव का साथ दिया था, समरसिंह ने भी पृथ्वीराज का साथ देकर अनहिलवाड़ा के राजा के विरुद्ध युद्ध किया था। तेजसिंह संवत् 1120 सन् 1064 ईसवी में चित्तौड़ के सिंहासन पर वैठा और यह वीसलदेव की तरफ से मुसलमानों के साथ युद्ध करने के लिये गया। राजा वीसलदेव का संदेश पाकर तोमर राजा भी गया था। इससे जाहिर होता है कि यह भी उसकी अधीनता में था। मेवाड की मेव जाति ने बाद में इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था। गौड़ जाति ने उन दिनों में विशेप प्रसिद्धि पायी थी और चौहानों के सामन्त राजाओं में उसका विशेष स्थान था। वालोच वंश के लोगों ने भी उस युद्ध के बाद इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था। वासुनी वंश का उल्लेख दूसरे स्थानों पर मनवासा के नाम से किया गया है। इसका प्राचीन नाम देवल था। उससे कुछ दूरी पर ठट्ठा नगर वसा हुआ है। मुलतान और नालवनी के लोगों पर चौहानों का उस समय शासन था। मीर लोग अरावली पर्वत के शिखर पर रहा करते थे। मिरवाण का आधुनिक नाम टोडा है। यह टोंक के समीप वसा हुआ है। डोडा और चन्देल वंश के राजपूतों ने उन दिनों में बहुत प्रसिद्धि पायी थी। चन्देलों ने किसी समय पृथ्वीराज के साथ युद्ध किया था और पृथ्वीराज ने चन्देलों से महोबा, कालिन्जर एवम् सम्पूर्ण बुन्देलखण्ड लेकर उन पर अपना अधिकार कर लिया था। दाहिमा वियाना के राजा का नाम है। वह धरणीधर के नाम से भी प्रसिद्ध था। उदय का अभिप्राय उदयादित्य से है। उसने इस देश में बहुत गौरव प्राप्त किया था। माणिकराय से लेकर चौहान सम्राट पृथ्वीराज तक जितने प्रमुख राजाओं के नामों का उल्लेख मिलता है, उनमें वीर वीसलदेव का नाम अधिक प्रसिद्ध है। इसलिये उसके समय का निर्णय करना यहाँ पर आवश्यक मालूम होता है। उस समय का कोई भी उल्लेख करने के पहले चौहान वंश की वशावली नीचे दी जाती है। x इससे प्रकट होता है कि परिहार लोग अजमेर के चौहानों की अधीनता में थे। 203