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यह पठार पहले मेवाड़ के राज्य का एक भाग था। अलाउद्दीन ने चित्तौड़ पर आक्रमण करके बहुत से गहिलोतों को मार डाला था। उस सर्वनाश से राणा बहुत निर्वल पड़ गया था। इस दशा में वहाँ के प्राचीन निवासी मीर लोगों ने मौका पाकर इस पठार पर अधिकार कर लिया था। किसी समय प्राचीन काल में प्रमार वंश का राजा हुण इस पठार का शासक था और मैनाल में उसकी राजधानी थी। उस राजधानी में हूण राजा के समय की बहुत सी चीजें अब तक देखने को मिलती हैं। मिली हुई ऐतिहासिक सामग्री से जाहिर होता है कि आठवीं शताव्दी में चित्तौड़ पर पहले-पहल आक्रमण होने पर हूण राजा अंगतसी ने राणा की सहायता में युद्ध किया था। यह भी जाहिर होता है कि प्रसिद्ध वारौली का मन्दिर इसी हूण राजा का बनवाया हुआ है। कोलन के लड़के राव बांगा ने मैनाल पर अधिकार करके पठार के पश्चिम की तरफ एक शिखर पर बंबावदा नामक दुर्ग बनवाया था। पूर्व की तरफ भैंसरोड, पश्चिम की तरफ बंबावदा और मैनाल पठार राज्य में शामिल थे और वहाँ पर हाड़ा राजा का अधिकार हो गया था। इसके पश्चात् माँडलगढ, बिजोलिया, बेंगू,रतनगढ़ और चौराइतगढ़ आदि अधिकार में आ जाने के कारण पठार राज्य की सीमा पहले से बढ़ गयी थी। राव बांगा के बारह लड़के पैदा हुये। उन सभी ने अपने वंश और राज्य की उन्नति की। राव बॉगा के बाद राव देवा उसके सिंहासन पर बैठा। राव देवा से हर राज, हथजी और समरसी नामक तीन लड़के पैदा हुये। हाड़ा राजाओं के बढ़ते हुये वैभव को देखकर दिल्ली के बादशाह का ध्यान उस ओर आकर्पित हुआ। सिकन्दर लोदी इन दिनों में दिल्ली के सिंहासन पर था। उसने हाड़ा राजा को दिल्ली आने के लिए संदेश भेजा। उस संदेश को पाकर राव देवा ने अपने बड़े लड़के को वंवावदा के शासन का अधिकार सौंपा और अपने छोटे लड़के समरसी के साथ वह दिल्ली गया। हाड़ा वंशी कवि के अनुसार राव देवा बहुत दिनों तक दिल्ली मे रहा। दिल्ली के बादशाह ने राव देवा का घोड़ा लेने की कोशिश की। वह किसी प्रकार अपना घोड़ा देना नहीं चाहता था। इस घोडे की कहानी इस प्रकार है: "दिल्ली के बादशाह के पास एक ऐसा घोड़ा था। जो अपने पैरों की टापों को पानी में विना स्पर्श किये नदी को पार कर जाता था। उस घोड़े की इस प्रशंसा को जानकर राव देवा ने बादशाह के अश्वपाल को रिश्वत देकर मिला लिया और अपने राज्य की एक घोडी से बादशाह के उस घोडे के द्वारा एक बच्चा पैदा करवाया। वह बछेडा कुछ दिनों के वाद घोड़ा हो गया। बादशाह ने उस घोड़े को लेने का इरादा किया। लेकिन राव देवा उसे देना नहीं चाहता था। उसने अपने परिवार के साथ के लोगों को दिल्ली से धीरे-धीरे रवाना कर दिया और सबके चले जाने के बाद वह हाथ में तलवार लिये हुए अपने घोड़े पर बैठकर बादशाह के पास पहुंचा। बादशाह उस समय अपने महल के एक बरामदे में था। उसे देखकर घोड़े पर चढ़े हुए राव देवा ने अभिवादन करते हुए कहा, जहांपनाह, आपके साथ मेरा यह अन्तिम अभिवादन है। मेरी इतनी ही आपसे प्रार्थना है जो आपको बताना चाहता हूँ कि कभी भी किसी राजपूत से उसकी तीन चीजों को पाने की अभिलापा न 210