पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

अध्याय-62 राजधानी बूंदी की स्थापना व राव अर्जुन सन् 1342 ईसवी में रावदेवा ने दी राजधानी की प्रतिष्ठा की। उसके बाद उसका राज्य हाडौती के नाम से प्रसिद्ध हुआ। वहां पर राव देवा के हाड़ा वंश के जो लोग रहते थे, उनकी अपेक्षा मीणा लोगों की संख्या बहुत अधिक थी। उन लोगों ने रावदेवा की अधीनता स्वीकार कर ली थी, लेकिन उनकी स्वतंत्र भावनायें बराबर काम करती रहती थीं। इस बात को रावदेवा समझता था। उन्हीं दिनों में मीणा जाति के एक सरदार ने रावदेवा की लड़की के साथ विवाह करने का इरादा किया और उसने इस विवाह का प्रस्ताव भी रावदेवा के पास भेजा। असभ्य मीणा जाति के सरदार के इस प्रस्ताव को सुनकर मीणा लोगों के साथ रावदेवा का एक विवाद उत्पन्न हुआ। रावदेवा इस बात को समझता था कि मीणा लोगों के अहंकार का कारण यह है कि उनकी संख्या राज्य में अधिक है। इसलिए उसने समझ-बूझ कर बंबावदा से हाड़ा जाति के और टोडा से सोलंकी वंश के बहुत से लोगों को बुलाया। उनके आ जाने के बाद मीणा और ओसारा लोगों पर एक साथ आक्रमण किया और भयानक रूप से उनका विनाश किया। इस आक्रमण में दोनों जातियों के लोग अधिक संख्या में मारे गये। रावदेवा ने अपना पहला राज्य बड़े लड़के हरराज को सौंप दिया था और उसके वाद वह दिल्ली चला गया। इसके बाद वह लौटकर अपने उस राज्य में नहीं गया। इन दिनों मे उसने अपना बूंदी का राज्य छोटे लड़के समरसी को सौंप दिया। दूसरी बार उसने राजा का अधिकार छोटे लड़के को क्यों दे दिया, इसको समझने के लिये कोई भी सामग्री हमको नहीं मिली। लेकिन अनुमान से मालूम होता है कि मीणा और ओसारा जाति के लोगों का दमन करने के बाद उसने अपने बुढ़ापे की अवस्था का अनुभव किया। इसलिए उसने शासन करने की अपनी अभिलाषा का परित्याग करके वृंदी राज्य का अधिकार छोटे लड़के को दे दिया। इसके बाद वह बूंदी छोड़कर वहाँ से पाँच कोस की दूरी पर अमरथून नामक एक स्थान पर चला गया और वहीं पर जाकर वह रहने लगा। इसके बाद वह लौटकर फिर कभी न तो बंबावदा गया और न बूंदी राज्य ही गया। राजपूतों की यह प्रथा बहुत पुरानी है कि जब राजा वृद्ध हो जाता है तो वह राज्य का भार उत्तराधिकारी पुत्र को सौंप कर राजधानी से चला जाता है। मृत्यु के बाद जिस प्रकार बारह दिन अपवित्रता के मनाये जाते हैं, राजा के राजधानी से चले जाने के बाद उसी प्रकार बारह दिन अपवित्र समझे जाते हैं। इसके बाद तेरहवें दिन राजधानी छोड़कर जाने वाले वृद्ध राजा की एक प्रतिमा बनायी जाती है और पुरानी प्रणाली के अनुसार उसकी दाह क्रिया की जाती है। 213