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पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२३४

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राजपूत उन तान्त्रिकों में शामिल होकर महाकाल भैरव की पूजा क्रिया करते थे। राव सुरतान ने भी ठर: दल में शामिल होकर काल भैरव के मन्दिर में जाना आरम्भ कर दिया था। इसलिये राज्य के सामन्त और दूसरे सभी लोग उससे बहुत अप्रसन्न हो गये। उन लोगों ने आपस में परामर्श करके उसे सिंहासन से उतार दिया। चम्बल नदी के किनारे एक साधारण ग्राम उसको रहने के लिये दे दिया गया। सुरतान ने उस ग्राम का नाम सुरतानपुर रखा। उसके कोई लड़का न था इसलिये बूंदी के सामन्तों ने आपस में परामर्श करके बूंदी राज्य के भूतपूर्व राजा राव भाँडा के दूसरे लड़के नरवुध के पुत्र अर्जुन को मातोंदा से लाकर बूंदी के सिंहासन पर बिठाया अर्जुन ने सिंहासन पर बैठकर शासन का कार्य आरम्भ किया। वह साहसी, समझदार, योग्य और युद्धकुशल था। राजपूतों में एक यह आदत पायी जाती है कि उनकी जव किसी के साथ शत्रुता हो जाती है तो वह शत्रुता उनके वंशजों तक चली जाती है और वे एक दूसरे को क्षति पहुँचाने में कुछ बाकी नहीं रखते। चित्तौड़ के राणा रत्नसिंह और बूंदी के राव सूर्यमल्लदोनों आपसी संघर्ष के कारण मरे थे। परन्तु राव अर्जुनसिंह और रत्नसिंह का लड़का-जो उसके समय मेवाड़ के सिंहासन पर था-आपस की शत्रुता को भुलाकर प्रेम और सद्भाव के साथ दोनों रहने लगे थे। गुजरात के बहादुरशाह ने जिस समय चित्तौड़ को घेर लिया था, उस समय जो हाड़ा राजा अपनी सेना लेकर चित्तौड़ की सहायता के लिये गया था और शत्रु सेना के साथ जिसने युद्ध किया था, वह राव अर्जुन ही था। जिस समय अर्जुन अपने साहस और पराक्रम के साथ चित्तौड़ के एक बुर्ज की रक्षा में युद्ध कर रहा था, उस समय वहादुरशाह ने उस बुर्ज के नीचे सुरंग तैयार करवायी थी और उस सुरंग में बारूद भरकर उसने आग लगवा दी थी। अर्जुन के प्राण उस समय भयानक संकट में पड़ गये थे। लेकिन वह जरा भी विचलित नहीं हुआ था और अपने हाथ में तलवार लेकर शत्रुओं का संहार करते हुए उसने वहीं पर एक सच्चे राजपूत की तरह अपने प्राण दे दिये। हाड़ा कवि ने अपने ग्रन्थ में अर्जुन की वीरता का वर्णन करते हुए बहुत अधिक प्रशंसा की है। अर्जुन के चार लड़के पैदा हुए थे। उनमें सबसे बड़े लड़के का नाम सुरजन था और वह सन् 1533 ईसवी में अपने पिता के सिंहासन पर बैठा। दूसरे लड़के का नाम था रामसिंह । उसके वंशज राम हाठा नाम से प्रसिद्ध हुये। तीसरे लड़के का नाम था अखैराज, उसके वंशज अखैराज पोता के नाम से पुकारे गये। सबसे छोटे लड़के का नाम था कांदिला। उसके वंशज जेसाहाड़ा नाम से विख्यात हुये। 226