पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२३५

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अध्याय-63 राव सुरजन से बुधसिंह तक का इतिहास राव सुरजनसिंह के सिंहासन पर बैठने के बाद बूंदी राज्य में अनेक प्रकार के राजनीतिक परिवर्तन हुये। वहाँ के राजाओं ने तव तक स्वतन्त्र शासन किया था और आवश्यकता पड़ने पर सम्मानपूर्वक उन्होंने मेवाड़ के राणा की सहायता की थी। लेकिन राव सुरजनसिंह के समय में राज्य की इन वातों में परिवर्तन हुये। उसे दिल्ली के बादशाह के प्रति अपनी स्वतन्त्रता को निर्बल करना पड़ा। यद्यपि ऐसा करके उसने अपने राज्य की शक्तियों को मजबूत बना लिया था। बूंदी राजवंश की एक शाखा में सामन्तसिंह नाम का एक व्यक्ति हुआ। वह उस राज्य का एक सामन्त था और अपने बल-पौरूप से उसने गौरव प्राप्त किया। शेरशाह का शासन निर्बल पड़ जाने पर सामन्तसिंह ने वैदला के चौहान सामन्त के साथ मेल पैदा किया और रणथम्भौर नामक प्रसिद्ध दुर्ग छोड़ देने के लिये उसने अफगान शासक को पत्र लिखा। अफगान वादशाह उसके इस प्रकार के पत्र को पाकर चिन्ता में पड़ गया। बहुत सोच समझकर उसने उस दुर्ग का अधिकार सामन्तसिंह को दे दिया और सामन्तसिंह ने वह दुर्ग सुरजनसिंह को दे दिया। वृंदी के राज्य में इस प्रकार का सुदृढ़ और सुरक्षित दुर्ग दूसरा न था। इसलिये उस दुर्ग का अधिकार पाकर सुरजनसिंह ने सामन्तसिंह का बहुत सम्मान किया और अपने राज्य के एक प्रसिद्ध इलाके का अधिकार उसको दे दिया। इस प्रकार सामन्तसिंह की ख्याति बूंदीराज्य में आरम्भ हुई। उसके वंशज सामन्त हाड़ा के नाम से विख्यात हुये। वैदला के जिस चौहान सामन्त ने रणथम्भौर के दुर्ग को लेने में सामन्तसिंह की सहायता की थी, उसने राव सुरजनसिंह से प्रस्ताव किया कि उस दुर्ग पर अधिकार उसे मेवाड़ के एक सामन्त की हैसियत से रखना होगा। राव सुरजन ने इसको स्वीकार कर लिया। दिल्ली के सिंहासन पर बैठकर बादशाह अकबर ने रणथम्भौर के इस दुर्ग को लेने का इरादा किया और उसने सेना लेकर उस दुर्ग को जाकर घेर लिया। राव सुरजन ने अपनी सेना लेकर बादशाह की विशाल सेना का मुकाबला किया और उसने किसी प्रकार दुर्ग को बादशाह के अधिकार मे जाने न दिया। बादशाह की फौज दुर्ग की दीवारों को विध्वंस करने की लगातार चेष्टा करती रही। लेकिन उसे सफलता न मिली। आमेर के राजा भगवानदास ने वादशाह अकवर की अधीनता स्वीकार कर ली थी और उसका लड़का मानसिंह वादशाह की सेना में सेनापति हो गया था। इन्हीं दिनों में राजा भगवानदास ने बादशाह अकवर के साथ अपनी वहन का विवाह कर दिया था। 227