पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२३७

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(7) बूंदी के राजा और उसके सामन्तों को किसी हिन्दू नरेश की अधीनता में रहने के लिये वाध्य नहीं किया जाएगा। (8) वादशाह और उसके अधीन राजाओं की अश्वारोही सेना के घोड़ों परवादशाह | का जो चिह्न रहता है, बूंदी की अश्वारोही सेना को घोड़ों पर उस प्रकार का चिह्न रखने के लिये विवश नहीं किया जायेगा। (9) दिल्ली जाने के समय दिल्ली के मार्ग में और दिल्ली राजधानी के लाल दरवाजे तकं बूंदी के राजा को नक्कारों के वाजों के साथ जाने का अधिकार होगा। (10) बूंदी के राजा को अपनी राजधानी में वे सभी अधिकार होंगे, जो अधिकार दिल्ली राजधानी में वादशाह को हैं। दोनों ही अपनी राजधानियों में आवश्यकतानुसार परिवर्तन करने के अधिकारी होंगे। ___ऊपर लिखी हुई शर्तों के साथ राव सुरजन और वादशाह अकवर में सन्धि हो गयी। इसके पश्चात् वादशाह ने राव सुरजन को तीर्थ स्थान काशी में महल बनवाने का अधिकार दिया। राव सुरजन के पहले उसके पूर्वज मेवाड़ के राणा की अधीनता में थे। राव सुरजन ने राणा की उस अधीनता को तोड़कर दिल्ली के वादशाह की अधीनता स्वीकार की। इन्हीं दिनों मेवाड़ के राणा प्रताप ने दिल्ली के बादशाह के साथ विद्रोह करके अपना राज्य छोड़ दिया था और वह अपने परिवार और साथ के लोगों को लेकर पर्वत के ऊपर कठोर जंगल में जाकर रहने लगा था। जिन दिनों में राणा प्रताप अपनी स्वतंत्रता को सुरक्षित बनाने के लिए जीवन का कठोर तप कर रहा था, राव सुरजन मुगल बादशाह की अधीनता में रहकर अपने गौरव को बढ़ाने में लगा हुआ था। यूँदी के राजा पहले राव की उपाधि रखते थे। किन्तु इन दोनों में बादशाह अकबर ने सुरजन को राव राजा की पदवी देकर सम्मानित किया। वादशाह अकवर ने राव राजा सुरजन को अपनी सेना में सेनापति का पद देकर गोडवाना राज्य पर आक्रमण करने के लिये भेजा। सुरजन ने अपनी सेना लेकर गोडवाना पर हमला किया और गोडो की राजधानी वाडी पर अधिकार कर लिया। उस राजधानी में उसने अपने नाम पर सुरजनपोल नाम का एक विशाल दरवाजा वनवाया। वह आज तक वहाँ पर इसी नाम से प्रसिद्ध है। गोडवाना राज्य को जीतकर राव राजा सुरजन ने गोडो के प्रधान सरदारों को कैद कर लिया और उनको सम्राट अकवर के पास ले आया। वहाँ लाकर दयालु हृदय सुरजन ने उनको छोड़ देने और राज्य के कुछ ग्रामों तथा नगरों पर उनको अधिकारी वना देने के लिये अकबर से अनुरोध किया। बादशाह अकबर ने उसके अनुरोध को स्वीकार कर लिया। राव राजा सुरजन की विजय के उपलक्ष में वादशाह अकवर ने प्रसन्न होकर वाराणसी और चुनार के साथ-साथ पाँच अन्य नगरो का अधिकार भी उसको दे दिया। सन् 1576 ईसवी में जव मेवाड़ का राणा प्रताप वादशाह के विरुद्ध हल्दीघाटी का युद्ध लड़ा था, उसी वर्ष राव राजा सुरजन को बादशाह की तरफ से ये नगर मिले थे। वाराणसी में रहकर राव राजा सुरजन ने शासन करते हुए ऐसे बहुत से कार्य किये, जिससे उसकी उदारता चारों तरफ लोगों में फैल गयी। बादशाह की सेना में सेनापति होकर 229