पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२३८

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उसने हिन्दुओं के साथ अनेक उपकार किये। पहले चोरों और डाकुओं का भय बहुत अधिक लोगों में पैदा हो गया था और प्रत्येक समय लोगों की शान्ति और सम्पत्ति अरक्षित रहती थी लेकिन राव राजा सुरजन के शासनकाल में चोरों और लुटेरों का भय एक साथ दूर हो गया और लोग शान्तिपूर्ण जीवन व्यतीत करने लगे। इन्हीं दिनों में राव राजा सुरजन ने वाराणसी नगर में एक अत्यन्त रमणीक महल बनवाया और सर्वसाधारण के उपयोग के लिये चौरासी स्थान बनवाये। गंगा के किनारे स्नान करने के लिये उसने बीस सुदृढ़ घाटों का निर्माण करवाया। अपने इन कार्यों से वह सर्वसाधारण में लोकप्रिय बन गया। कुछ दिनों के बाद वाराणसी में सुरजन की मृत्यु हो गयी। उसके तीन लड़के थे। पहला रावभोज, दूसरा दूदा, अकबर इसको लकड़खाँ नाम से सम्बोधित करता था और तीसरा रायमल । रायमल को पलायता नामक नगर और उसके ग्राम मिले, जो अब कोटा की जागीरों में शामिल हैं। इन्हीं दिनों में बादशाह अकबर ने दिल्ली से उठाकर अपनी राजधानी आगरा में कायम की और वहाँ पर अनेक प्रकार के निर्माण करके उसने उसका नाम अकबराबाद रखा। इसके कुछ दिनों के पश्चात् बादशाह अकबर ने गुजरात पर अधिकार करने का निश्चय किया। अपने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये वहाँ पर उसने अपनी एक विशाल सेना भेजी और उसके बाद वह स्वयं अपनी एक दूसरी सेना के साथ वहाँ पर पहुँच गया। अकबर की ये दोनों सेनायें ऊँटों पर बैठकर गयी थीं। गुजरात को पराजित करने के लिये बादशाह ने पाँच सौ शूरवीर राजपूतों को भी ऊँटों पर बिठाकर भेजा था और उनका नेतृत्व राव भोज और दूदा को सौंपा था। बादशाह की जो सेना पहले गुजरात की तरफ रवाना हुई थी, उसने सूरत को जाकर घेर लिया। उसके बाद अपनी सेना लिये हुए अकबर भी वहाँ पहुँच गया। बादशाह की दोनों सेनाओं ने मिलकर वहाँ पर भीपण युद्ध किया। उस युद्ध में राव भोज के द्वारा शत्रु सेना के अनेक शूरवीर मारे गये और अन्त में बादशाह अकबर की विजय हुई। सूरत की इस लड़ाई में विजयी होने के बाद बादशाह बहुत प्रसन्न हुआ और उसने राव भोज से पूछा:"इस विजय के पुरस्कार में आप क्या चाहते हैं?" बादशाह के प्रश्न को सुनकर राव भोज ने कहा-"प्रति वर्ष बरसात के दिनों में मैं अपनी राजधानी बूंदी मे जाकर रहना चाहता हूँ। ऐसी मेरी अभिलापा है। उसके लिये सुविधा की आप से माँग करता हूँ।" बादशाह अकबर ने राव भोज की इस मांग को बड़ी प्रसन्नता के साथ स्वीकार कर लिया। बादशाह अकबर ने दिल्ली के सिंहासन पर बैठने के बाद लगातार उन्नति की। अपनी राजनीति के द्वारा उसने राजपूत राजाओ को अपनी अधीनता की जझीर में बाँधा और लगातार अपने राज्य की वृद्धि की। अपने राज्य के विस्तार के लिये उसने अधीन राजपूत राजाओ से बडी बुद्धिमानी के साथ काम लिया और सभी युद्धों में उसने विजय प्राप्त की। बूंदी के राव भोज ने बादशाह की तरफ से कई एक युद्ध किये और उनमें विजय पाने के कारण उसने सम्राट के यहाँ सम्मानपूर्ण पद प्राप्त किया था। 230