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पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२४२

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ब्राह्मण वहाँ से लौटकर अपने मकान पर आया और तलवार लेकर उसने राजकुमार गोपीनाथ को जान से मार डाला। उसके बाद ब्राह्मण ने राजकुमार के मृत शरीर को मकान के बाहर फेंक दिया। यह समाचार राव रतन सिंह को मिला। उसने सुना कि राजकुमार गोपीनाथ मार डाला गया है। यह सुनने के बाद उसने क्रोध में आकर आदेश दिया कि हत्यारे को पकड़ • कर उसको मृत्यु की सजा दी जाये। इसके बाद उसे मालूम हुआ कि राजकुमार गोपीनाथ को ही ब्राह्मण ने अपने मकान पर पकड़ा था और उसके आकर पूछने पर मैंने ही उसको मार डालने का आदेश दिया था। इस रहस्य को जान लेने के बाद राव रतन चुप हो गया और उसके पश्चात् ब्राह्मण के विरुद्ध कुछ नहीं किया गया। गोपीनाथ के बारह लड़के थे। राव रतन ने उन सब को अपने राज्य में अलगअलग जागीरे दी और वे बूंदी राज्य के प्रधान सामन्तों में माने गये। गोपीनाथ के सब से बड़े लड़के छत्रसाल को बूंदी राज्य का अधिकार मिला। उस समय उसने नीचे लिखे हुए स्थानों पर शासन आरम्भ किया 1 इन्द्रसिंह ने इन्द्रगढ़ की प्रतिष्ठा की थी। 2. बैरीसाल ने बलवन और फिलोदी नाम के दो नगर वसाये थे। करवर और पिपलोदा नाग के दो नगरों पर अधिकार कर लिया था। 3 मोखिमसिंह को ऑतरदा नामक ग्राम मिला था। बाद में इन्द्रगढ़ बलवन और ऑतरदा, पर कोटा के जालिमसिंह ने पड़यंत्र के द्वारा अधिकार कर लिया था। ___4 महासिंह को थाना नामक ग्राम प्राप्त हुआ था। दूसरे ग्रन्थों में इस ग्राम का नाम थावना लिखा गया है। गोपीनाथ के शेप पुत्रों के सम्बन्ध में कोई उल्लेखनीय वात पढ़ने को नहीं मिली। राव रतन के मर जाने के बाद गोपीनाथ का बड़ा लड़का छत्रसाल पितामह के सिंहासन पर बैठा। उसके अभिषेक के समय बादशाह शाहजहाँ बूंदी राजधानी में गया था और उसने स्वयं उसको तिलक किया था। राव रतन बादशाह शाहजहाँ की तरफ से न केवल अपने पैतृक राज्य का अधिकारी माना गया था, बल्कि वह वादशाह की राजधानी का गवर्नर भी घोपित हुआ था। उसका यह अधिकार उसके जीवन भर कायम रहा। बादशाह शाहजहाँ ने जब अपने चारों लड़कों को राज्य के अलग-अलग हिस्से देकर शासन करने का भार सौंपा था, उस समय औरंगजेब की सेना में राव छत्रसाल को सेनापति का पद मिला था और इस अधिकार के साथ वह दक्षिण भेज दिया गया था। बादशाह ने अपने चारों लड़कों-दारा, ओरंगजेब, शूजा और मुराद को राज्य में अलग-अलग अधिकारी बना दिया था। दक्षिण राज्य का अधिकार प्राप्त करके औरंगजेब ने वहाँ पर युद्ध आरम्भ किया और कई दुर्गो पर उसने अधिकार कर लिया। दौलताबाद और बीदर नामक दुर्गों पर युद्ध के समय हाड़ा राजा छत्रसाल ने अपने असीम साहस और शौर्य का परिचय दिया। उसने बीदर के दुर्ग पर आक्रमण करके विजय प्राप्त की और भयानक रूप से शत्रु सेना का संहार किया। सन् 1653 ईसवी में कलवर्ण का युद्ध हुआ। उस संग्राम में भी राव छत्रसाल को विजय प्राप्त हुई। धामूली के दुर्ग को जीतने के बाद दक्षिण मे फिर कोई संघर्प नहीं हुआ। 234