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दक्षिण की इन घटनाओं के समय एकाएक सुनने को मिला कि बादशाह शाहजहाँ की मृत्यु हो गयी है। उन दिनों में बादशाह लगातार बीस दिनों तक दरवार में नहीं आया। इससे लोगों को विश्वास हो गया कि सचमुच बादशाह की मृत्यु हो गयी है। वादशाह के लड़कों में केवलं दारा शिकोह दिल्ली राजधानी में रहता था। उसके शेप तीनों भाई राज्य के अलग-अलग भागों में उस समय दूर थे। वादशाह की मृत्यु का समाचार सुन कर शेष तीनों भाई अपने-अपने स्थानों से दिल्ली की तरफ रवाना हुये। वे सभी सिंहासन का अधिकार प्राप्त करना चाहते थे। इसीलिये वे दिल्ली शीघ्र पहुंचना चाहते थे। शुजा बंगाल में था। वहाँ से रवाना होने से पहले उसने अपने मन में अनेक प्रकार की कल्पनायें की। औरंगजेब ने दक्षिण से चलने के समय मुराद के पास संदेश भेजा कि मैं शासन के कार्यो से उदासीन हो चुका हूँ। मेरे हृदय में सिंहासन पर बैठने की जरा भी अभिलापा नहीं है। मैं जंगल के जन हीन स्थानों पर रहकर मोहम्मद पैगम्बर की नसीहतों के अनुसार अपना जीवन व्यतीत करना चाहता हूँ। दारा नास्तिक है और मैंने राज्य का प्रलोभन त्याग दिया है। इस दशा में सिंहासन पर बैठने के केवल आप ही अधिकारी हैं और मैं आपको ही मुगल सिंहासन पर बिठाना चाहता हूँ। मुराद के पास औरंगजेब का भेजा हुआ यह सन्देश वादशाह शाहजहाँ को मालूम हुआ। उसने गुप्त रूप से संदेश भेजकर हाड़ा राजा छत्रसाल को सेना के साथ दिल्ली राजधानी में बुलाया। छत्रसाल को बादशाह का जब संदेश मिला तो उसने निश्चय किया कि किसी भी अवस्था में बादशाह की आज्ञा का पालन करना मेरा कर्तव्य है। इस प्रकार निर्णय करके छत्रसाल दक्षिण से रवाना होने की तैयारी करने लगा। औरंगजेब अभी तक दक्षिण में मौजूद था। उसे जब मालूम हुआ कि छत्रसाल एकाएक दक्षिण से दिल्ली जाने की तैयारी में है तो वह सोचने लगा कि उसके अकस्मात दक्षिण से दिल्ली जाने का कारण क्या हुआ और वह कारण मुझे क्यों नहीं जाहिर हुआ। अनेक प्रकार के संदेह कर के औरंगजेब ने छत्रसाल से पूछा कि आपके एकाएक यहाँ से दिल्ली जाने का कारण क्या है? अभी आप यहाँ से रवाना न हों और मेरे साथ ही आप दिल्ली चलें। औरंगजेब की इस बात को सुनकर छत्रसाल ने गम्भीर होकर कहा-"बादशाह की आज्ञा का पालन करना मेरा कर्त्तव्य है।" .. यह कहकर छत्रसाल ने औरंगजेब के हाथ में वह पत्र दिया, जो उसे वादशाह शाहजहाँ की तरफ से मिला था। उस पत्र को पढ़कर औरंगजेब ने छत्रसाल से कहा : "आप किसी भी अवस्था में यहाँ से राजधानी नहीं जा सकते।" इस प्रकार का आदेश देकर औरंगजेब ने अपने आदमियो से कहा :"जैसे भी हो सके, राव छत्रसाल को यहाँ से जाने न दो।" औरंगजेव का यह आदेश छत्रसाल से छिपा न रहा। उसने बुद्धिमानी से काम लिया और अपने शिविर का सभी आवश्यक सामान अपनी एक सेना के साथ वहाँ से रवाना कर दिया। उसने मुगल सेना के उन्हीं सैनिकों को अपने साथ रखा जो बादशाह शाहजहाँ के सभी 235