पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२४६

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लिया कि इन राजपूतों से मेल रखने में ही अपनी भलाई है। उसने राव भाव सिंह को दिल्ली राजधानी में आने के लिए सन्देश भेजा। लेकिन भावसिंह किसी प्रकार दिल्ली जाने के लिए तैयार न हुआ। वह अनेक प्रकार के संदेह करने लगा। लेकिन औरंगजेब ने कई बार उसको पत्र लिखे और इस बात का विश्वास दिलाया कि मुझसे आप का कोई अनिष्ट न होगा। इसके बाद शव भावसिंह अपनी सेना के साथ दिल्ली गया। बादशाह औरंगजेब ने उसके साथ दिल्ली में अत्यन्त सम्मानपूर्ण व्यवहार किया और शाहजादा मुअज्जम की अधीनता मे उसको औरंगाबाद का शासक बना दिया। राव भावसिंह ने औरंगाबाद के शासन का अधिकार पाकर ओड़छा और दतिया के बुंदेला लोगों के साथ होने वाले युद्धों में अपनी वीरता का परिचय दिया था। बीकानेर के राजा कर्ण का सर्वनाश करने के लिए जो पड्यंत्र रचा गया था, राव भावसिंह ने उस पड्यंत्र को नष्ट करके बीकानेर के राजा की रक्षा की। राव भावसिंह ने औरंगावाद में कई इमारतें बनवाई। वहाँ के इतिहास से जाहिर होता है कि उसने अपने साहस,शौर्य और उदार व्यवहार के द्वारा सभी प्रकार के लोगो में लोकप्रियता पायी थी। सन् 1682 ईसवी में राव भावसिंह की औरंगाबाद में मृत्यु हो गयी। राव भावसिंह के कोई लड़का नहीं था। इसलिये उसके भाई भीमसिंह के लड़के का लड़का अनिरुद्ध बूंदी के सिंहासन पर बिठाया गया और भीमसिंह को गूगोर का अधिकारी बना दिया। भीमसिंह के लड़के किशन सिंह को औरंगजेब ने छल से मरवा डाला था। अपने उस अपराध को छिपाने के लिए उसने अनिरुद्ध सिंह के अभिषेक के समय मूल्यवान उपहारों के साथ एक हाथी सजा कर भेजा था। राव अनिरुद्ध सिंह ने बूंदी के सिंहासन पर बैठने के बाद दिल्ली में जाकर अपने सम्मान का परिचय दिया। इसके कुछ दिनों के बाद बादशाह औरंगजेब जब अपनी सेना को लेकर दक्षिण में युद्ध करने के लिए गया तो राव अनिरुद्ध सिंह भी अपनी सेना के साथ वहाँ गया। दक्षिण में मुगल सेना को भयानक युद्ध करना पड़ा और उन्हीं दिनों में शत्रुओं की एक सेना ने बादशाह औरंगजेब के उस शिविर में आक्रमण किया जिसमें उसकी बेगमें थीं। उस समय बादशाह की बेगमों के सामने भयानक संकट उत्पन्न हो गया। इस भीषण समय में राव अनिरूद्ध सिंह ने अपने राजपूतों के साथ शत्रुसेना पर आक्रमण किया और उसे परास्त करके उसने बेगमों की रक्षा की। बादशाह औरंगजेब अनिरुद्ध सिंह के इस साहसपूर्ण कार्य से बहुत प्रसन्न हुआ और उसने उससे पूछा :"इसके बदले में आप क्या पुरस्कार चाहते हैं?" वादशाह के इस प्रश्न को सुनकर अनिरूद्ध सिंह ने कहा " मै कोई पुरस्कार नही चाहता। मैं इस समय आपके पीछे चलने वाली सेना का अधिकारी बनाया गया हूँ। मैं चाहता हूँ कि मुझे सम्पूर्ण सेना के आगे चलने का अधिकार दिया जाये।" बादशाह औरंगजेब ने राव अनिरूद्ध सिंह की इस मांग को स्वीकार कर लिया। वादशाह औरंगजेब जब बीजापुर का युद्ध लड़ रहा था। राव अनिरूद्ध सिंह ने उस युद्ध में भी अपने आश्चर्य जनक रणकौशल का परिचय दिया था और बादशाह उससे भी बहुत प्रसन्न हुआ था। 238