पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२६१

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में रख दी। यह सुनकर राणा बहुत क्रोधित हुआ और वह एक सेना लेकर उस स्थान पर पहुंचा, जहाँ पर संघर्ष था। इसके बाद राणा ने अजितसिंह को शिविर में वुलाया। अजितसिंह वहाँ पहुँचा। उसके सद्व्यवहार को देखकर राणा संघर्ष को भूल गया। अजितसिंह ने वसन्ती उत्सव के समय राणा को आमन्त्रित करने का निश्चय किया। फाल्गुन के महीने में राजपूतों का बसन्ती उत्सव बहुत प्रसिद्ध है। उस उत्सव में राजपूत बाराह का शिकार करते थे। हाड़ा राजा अजितसिंह ने आमन्त्रित करते हुए राणा से कहा कि बसन्ती उत्सव के अवसर पर बूंदी के राजभवन में आवें । राणा ने इस निमन्त्रण को स्वीकार कर लिया। सीसोदिया राजपूतों में उस निमन्त्रण के अनुसार जाने की तैयारियां होने लगी और निश्चित दिन राणा अपने सामन्तों के साथ हरे रंग की पगड़ियों में बूंदी के नन्दता नामक पहाडी स्थान पर पहुँच गया। इन्हीं दिनों में उम्मेदसिंह बद्रीनाथ से लौटकर आया। उसने सुना कि राणा के साथ पुत्र अजितसिंह बाराह का शिकार करने के लिये जाने की तैयारी कर रहा है। उसी समय उम्मेदसिंह ने अजितसिंह को रोकने के लिए एक आदमी भेजा और उस सती स्त्री के वाक्यों का स्मरण दिलाकर राणा के साथ न जाने के लिये कहा। अजितसिंह ने अपने पिता उम्मेदसिंह के सन्देश को सुना। उसने उत्तर में कहला भेजा : "मैंने ही राणा को आमन्त्रित किया है। इसलिये मेरा न जाना किसी प्रकार अच्छा सावित नहीं हो सकता। सती के कहने के अनुसार अनिष्ट होने से डर जाना एक राजपूत की लज्जापूर्ण कायरता है। इसलिये मेरा जाना प्रत्येक अवस्था मे जरूरी है।" राणा अजितसिंह पहले दिन दोपहर के बाद शिकार खेलने के लिये निकला। वहाँ पहुंचने पर मेवाड़ के मंत्री ने अजितसिंह के पास पहुंचकर अभिमान के साथ कहा : "वीलहठा राणा का है। वहाँ से आप अपना अधिकार हटा लें। यदि आपने ऐसा न किया तो एक सिन्धी सेना भेजकर आपको कैद करा लिया जाएगा।" मंत्री ने अजितसिंह से यह भी कहा कि राणा के आदेश के अनुसार मैंने आपसे ऐसा कहा है। अजितसिंह ने उस समय मंत्री को कुछ उत्तर न दिया। वह रात भर संशय मे पड़ा रहा। दूसरे दिन बाराह के शिकार का उत्सव हो जाने पर राणा ने अजितसिंह को विदा किया। वहां से कुछ दूर चले जाने के बाद अजित सिंह को मंत्री की वात का स्मरण हुआ। इसलिये वह लोटकर फिर राणा के पास आ गया। राणा अभी तक किसी निर्णय मे न था। उसने विना कुछ कहे हुए अजित को फिर से विदा किया। अजितसिंह राणा से विदा होकर अपनी राजधानी की तरफ चला। परन्तु उस समय मेवाड के मंत्री की कही हुई वातें उसको बार-बार याद आने लगी। उसने समझ लिया कि मेरे विरुद्ध राणा ने इस प्रकार का निर्णय जरूर किया है और मन्त्री ने इस बात को स्पष्ट भी कर दिया था, वह क्रोध मे आकर उत्तेजित हो उठा। अपने हाथ मे भाला लंकर वह फिर लौटा और राणा पर जाकर उसने आक्रमण किया। अजित के भाले से राणा भयानक रुप से घायल हो गया। उसके मुख से उस समय इतना ही निकला-"ओह हाड़ा, तुमने यह क्या किया।" कुछ ही देर में राणा की मृत्यु हो गयी। मेवाड़ के राणा को मार कर अजित सिंह ने उस क्रोध मे शान्ति अनुभव की, जो मन्त्री के कहने से उसके हदय मे पैदा हुआ था। वह अपनी राजधानी मे आ गया। राणा के मारे जाने का समाचार साधु उम्मेदसिह ने सुना। वह वहुत दुःखी हुआ। उसने क्षण भर मे सोच डाला कि इस राज्य मे अब फिर पाप की वृद्धि हो रही है। उसने उसी समय निश्चय किया कि अब मैं कभी अपने लडके का मुख नहीं देखूगा। 255