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कोटा राज्य का इतिहास कोटा व बूंदी के हाड़ा राजवंश कोटा और बूंदी, दोनों राजवंशों का मूल एक ही है। दोनो ही हाड़ा वंशी राजपूत हैं। बूंदी के एक राजवंशज से ही कोटा राज्य का इतिहास आरम्भ हुआ है। बादशाह शाहजहाँ के शासनकाल में बूंदी के राव राजा रतनसिंह के दूसरे लड़के माधवसिंह ने मुगल साम्राज्य का पक्ष लेकर बुरहानपुर के युद्ध में अपनी अद्भुत वीरता का परिचय दिया था और उस युद्ध में विजय प्राप्त की थी। इसलिये वादशाह शाहजहाँ ने प्रसन्न होकर कोटा का इलाका और उसके अन्तर्गत सभी ग्राम और नगर उसको दे दिये थे। उस समय से माधवसिंह अपने पिता के बूंदी राज्य को छोड़कर स्वतन्त्रतापूर्वक कोटा राज्य का शासन करने लगा था। उस समय से बूंदी और कोटा दो अलग-अलग राज्य हो गये। माधवसिंह का जन्म सन् 1565 ईसवी मे हुआ था। चौदह वर्ष की अवस्था में उसने बुरहानपुर का युद्ध लड़ा था। उसके फलस्वरूप कोटा के तीन सो साठ नगरो और ग्रामो पर उसे अधिकार मिला था। इसके पहले कोटा एक जागीर थी और वह बूंदी राज्य के एक सामन्त के अधिकार में थी। उसमे दो लाख रुपये प्रजा से कर के रूप मे वसूल होते थे। साहस और वीरता के कारण माधवसिंह को बादशाह से राजा की उपाधि मिली थी। ___इस कोटा मे पहले कोटिया भील का शासन था और उसमे भील लोग रहा करते थे। ये लोग वहाँ के प्राचीन निवासी थे। उन लोगों के साथ खाने और पीने में राजपूत लोग कोई परहेज नहीं करते थे। राजपूतो के अधिकार करने के पहले कोटा में केवल झोपड़ियाँ थीं और वहाँ का भील राजा कोंट से पाँच कोस दूर दक्षिण की तरफ इकलेगढ नामक प्राचीन दुर्ग में रहा करता था। दिल्ली के बादशाह से कोटा की सनद पाने पर माधवसिंह ने उसकी सीमा में वृद्धि की। उन दिनों में कोटा के दक्षिण में गागरोन और चाटौली का प्रान्त था। खींची लोग वहाँ के अधिकारी थे। पूर्व में मांगरोल और नाहरगढ़ था, जिनमे पहले गौर राजपूतों का अधिकार था और उनके बाद राठोंरों का अधिकार हो गया। वहाँ के राजपूतो ने अपने राज्य की रक्षा करने के लिये धर्म का परिवर्तन कर लिया और वाद मे वे नवाव की उपाधि से प्रसिद्ध हुए थे। उत्तर में काटा की सीमा चम्बल नदी के किनारे सुलतानपुर तक थी। चम्बल नदी के दूसरी तरफ नाशता नाम का एक स्वतन्त्र छोटा-सा राज्य था। उसमे सब मिलाकर तीन मो साठ नगर और ग्राम थे। अनेक नदियो का पानी मिलने के कारण वहाँ की भूमि बहुत उपजाऊ थी। 261