पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२७२

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का नगाडा और झण्डा आदि अपने कोटा राज्य में ले आया। बादशाह जहाँगीर ने बूंदी के राजा रतनसिह को जो पीले रङ्ग की राज पताका दी थी, उसे भी भीमसिंह ने बूंदी से लाकर अपने यहाँ रखा। इन सभी चीजो को फिर से प्राप्त करने के लिए बूंदी के राजा ने अनेक बाद कोशिशें कीं, परन्तु उसको सफलता न मिली। इसके लिए कोटा के पहरेदारों और राज्य के दूसरे अधिकारियों को प्रलोभन देकर उन चीजों को प्राप्त करने की चेप्टा की गयी। परन्तु कोई परिणाम न निकला। बल्कि बूंदी वालो की ये कोशिशे कोटा में जाहिर हो गयी। इसलिए वहाँ पर अधिक सावधानी से काम लिया जाने लगा और यहाँ तक किया गया कि कोटा राजधानी का नगर द्वार संध्या होने के बाद बहुत जल्दी बन्द हो जाता और फिर वह किसी प्रकार न खुल पाता। इसके सम्बन्ध में लिखा गया है कि अगर कोटा का राजा स्वयं सायंकाल के बाद बाहर से आकर उस नगर-द्वार को खुलवाना चाहे तो भी वह नहीं खुल सकता। इसके सम्बन्ध मे एक घटना का उल्लेख किया गया है, जो इस प्रकार है : "कोटा का राजा दुर्जनशाल किसी युद्ध में पराजित होकर अपने थोडे से सैनिकों के साथ आधी रात के समय राजधानी मे आया और पहरेदार से उसने फाटक खोलने के लिए कहा। परन्तु पहरेदार ने रात के समय फाटक खोलने से साफ-साफ इन्कार किया। इसलिए कि उसको आज्ञा मिल चुकी थी कि रात को किसी प्रकार फाटक न खोला जाए। यह देखकर राजा दुर्जनशाल स्वयं फाटक पर आया और अपना परिचय देकर पहरेदार से फाटक खोलने के लिए कहा। पहरेदार ने इस पर भी फाटक नही खोला और उसने फाटक के भीतरी हिस्से से जवाब देते हुए कहा-"फाटक रात में किसी प्रकार नहीं खुल सकता। यदि आप इसके बाद फिर कहेगे तो मैं बन्दूक की गोली से आपको मार दूंगा। अगर आप हमारे राजा हैं तो भी बाहर ही रहकर कहीं पर रात बितानी पड़ेगी।" राजा दुर्जनशाल ने निराश होकर रात का शेप भाग बाहर किसी स्थान पर व्यतीत किया। दूसरे दिन सवेरे फाटक खोला गया और पहरेदार जिस समय रात की इस घटना की बात अपने साथ के किसी सैनिक से कह रहा था, सामने से राजा दुर्जनशाल ने फाटक में प्रवेश किया। अपने राजा को देखकर पहरेदार भयभीत हो उठा। उसने आगे बढ़कर अपने हाथ की बन्दूक राजा के चरणों मे रख दी और हाथ जोडकर वह खडा हो गया। राजा दुर्जनशाल ने मुस्कराते हुए उसकी तरफ देखा और उसकी कर्त्तव्य परायणता से प्रसन्न होकर उसको पुरस्कार देने का आदेश दिया। राजा भीमसिंह के शरीर पर इतने अधिक जख्म आये थे कि उससे उनके शरीर की सुन्दरता नष्ट हो गयी थी। इसलिए वह अपने शरीर के सूखे हुए जख्मों को छिपाने के लिए हमेशा वस्त्र पहने रहता था। कुरवाई युद्ध मे कुलीचखाँ के गोले से घायल होने के बाद उसके जख्मो को देखकर जब एक राज्य अधिकारी ने उससे पूछा तो भीमसिह ने उसको जवाब देते हुए कहा : “जो शासन करने के लिए पैदा हुआ है और अपने पूर्वजों के राज्य की रक्षा करना चाहता है, उसको तो इस प्रकार की चोटो का सामना करना ही पड़ेगा।" ____कोटा के राजाओं में भीमसिंह पहला राजा था, जिसने मुगल बादशाह के यहाँ पचहजारी मनसबदार अर्थात् पाँच हजार सेना पर सेनापति का पद प्राप्त किया था और महाराव की उपाधि पायी थी। यह उपाधि मेवाड़ के राणा से उसे मिली थी और मुगल बादशाह ने उसकी इस उपाधि को स्वीकार किया था। 266