पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२७१

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साथ चल सकती हैं। मुझे वादशाह की तरफ से जो आदेश मिला है, उसका पालन मुझे करना चाहिए और इसीलिये मैं इतनी दूर से सेना लेकर आया है। बादशाह की आज्ञानुसार मैं कल प्रात:काल आपके ऊपर आक्रमण करूँगा।" ___ भीमसिंह ने अपना पत्र निजामुलमुल्क के पास भेज दिया। उसने उसको सावधान कर दिया। कुलीच खाँ ने अपनी रक्षा करने के लिए राजनीति के सभी दाँव-पेंच सोच डाले। उसने सिन्धु के कुरवाई और भौरसा नगरों के निकट वाले पहाड़ी मार्ग पर मुकाम किया। यह स्थान ऐसा था, जहाँ शत्रु लोग उसको आसानी से पा नहीं सकते थे और अपने इस स्थान से आक्रमणकारियों पर छिपकर गोलियों की वर्षा की जा सकती थी। यही समझकर निजामुलमुल्क ने उस पहाड़ी के तंग रास्ते में अपनी फौज का मुकाम किया। दूसरे दिन प्रात:काल भीमसिंह ने अपनी सेना को तैयार किया। आमेर के जयसिंह की सेना भी वहाँ पर उसके साथ थी। भीमसिंह ने अफीम का सेवन करने के वाद निजामुलमुल्क पर आक्रमण करने की तैयारी की। युद्ध के लिए सुसज्जित होकर उसने अपने हाथ में भाला लिया और अपनी तथा आमेर की सेना को मिलाकर वह रवाना हुआ। राजपूत सेना के आगे बढ़ते ही कुलीच खॉ ने अपनी तोपों में-जो कुछ दूरी पर ऐसे छिपाकर लगायी गयी थीं, जो कहीं से जाहिर न होती थीं-आग लगा दी। तुरन्त गोलो की ऐसी वृष्टि हुई कि उसके द्वारा हाथियों पर बैठे हुए राजा भीमसिंह और राजा गजसिंह-दोनों ही मारे गये। उनके मारे जात ही राजपूत सेना इधर-उधर भागने लगी। इस प्रकार कुलीच खाँ ने विजय पायी और फिर वह दक्षिण की तरफ रवाना हुआ। हैदरावाद पहुँचकर उसने स्वतन्त्रतापूर्वक शासन आरम्भ किया। हैदरावाद का राज्य अव तक उसके वंशजों में चला आता है। इस समय का उल्लेख करते हुये प्राचीन ग्रन्थों में हाड़ा वंश की दो विपदाओं का वर्णन किया गया है। एक तो राजा भीमसिंह का मारा जाना और दूसरा कोटा राजवंश के इप्टदेव बृजनाथ की मूर्ति का खो जाना। राजपूत राजा युद्ध में अपने इष्टदेव की मूर्ति ले जाते हैं और युद्ध के समय अपने इष्टदेव का नाम लेकर राजपूत लोग विजय की आवाज लगाते हैं। कोटा राजवंश के इष्टदेव की मूर्ति छोटी-सी सोने की बनी हुई थी। उस वंश के लोगों ने उस मूर्ति को साथ में लेकर कितने ही युद्धों में विजय प्राप्त की थी। इन दिनों में वह मृति कहाँ खो गई, इसका कुछ पता न चला। कहा जाता है कि बहुत खोजने के बाद कोटा के राजपूतों को उसी तरह की एक दूसरी मूर्ति मिली। उसको पाकर कोटा की राजधानी में समारोह के साथ एक उत्सव मनाया गया। पन्द्रह वर्ष तक राज्य करने के बाद 1720 ईसवी मे-जैसा कि ऊपर लिखा गया हैभीमसिंह युद्ध में मारा गया था। उसने अपने शासनकाल में कोटा राज्य की उन्नति करके अपनी योग्यता, वीरता और राजनीति का परिचय दिया। कोटा और बूंदी के राजवंशो का मूल एक ही था। बूंदी के राजा बुधसिंह के साथ कोटा के राजा रामसिंह का बुद्ध धौलपुर में हुआ। दोनों ही हाड़ावंशी राजपूत थे। फिर भी दोनों और की सेनाओ ने एक दूसरे का सर्वनाश किया। इस युद्ध के परिणामस्वरुप बूंदी के राजवंश को भयानक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। राजा भीमसिंह बृदी पर आक्रमण करके वहाँ 265