पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२८५

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प्रार्थना की कि हम लोगों को अपनी जन्मभूमि में लौट कर आने के लिए फिर से अधिकार दिया जाए। जालिम सिंह ने उनकी प्रार्थना को स्वीकार कर लिया, जिससे वे लोग फिर कोटा राज्य में आ गये। लेकिन उनके चले जाने के बाद उनकी जो जागीरें राज्य में मिला ली गयी थीं, वे उनको नहीं दी गयीं। केवल जीवन निर्वाह के लिए उन लोगों को थोड़ी-थोड़ी भूमि दे दी गयी और वे जालिम सिंह की चालों से भयभीत होकर कोटा राज्य में रहने लगे। ____ इतना सब होने पर भी कोटा में जालिम सिंह के विरुद्ध एक छिपा हुआ विद्रोह चल रहा था और कुछ दिनों के बाद जालिम सिंह के विरुद्ध जो विद्रोह पैदा हुआ, वह पहले की अपेक्षा अधिक भयानक था। कोटा में जालिम सिंह के विरुद्ध जो सामन्त थे, आथून जागीर का सामन्त देवसिंह उन सवका प्रधान था। उसकी जागीर की आर्थिक आमदनी आठ हजार रुपये थी। देवसिंह ने जालिम सिंह के विरुद्ध एक नया विद्रोह पैदा किया। उसके अधिकार में एक मजबूत दुर्ग था, जिसको उसने स्वयं वनवाया था। उस दुर्ग में जालिम सिंह के विरोधी सामन्त आकर एकत्रित हुए और जालिम सिंह के विरुद्ध तैयारी करने लगे। जालिम सिंह बड़ी सावधानी से कोटा में शासन कर रहा था। वह अत्यन्त दूरदर्शी था और उसके गुप्तचर चारों तरफ फैले हुए थे। जालिम सिंह को मालूम हो गया कि आथून के दुर्ग में विरोधी सामन्त एकत्रित होकर मेरे विरुद्ध तैयारी कर रहे हैं। इसलिए सचेत होकर उसने सोच डाला कि राज्य की सेना के द्वारा इन संगठित सामन्तों को पराजित करना कठिन है। इसलिए किसी दूसरे उपाय का आश्रय लेना चाहिए। ___ इन दिनों में दिल्ली के बादशाह का प्रभाव करीब-करीव बहुत क्षीण हो गया था। इसीलिए चारों तरफ अशान्ति और अराजकता बढ़ रही थी। मराठों का दल चारों तरफ लूटमार कर रहा था और उसने अनेक प्रकार के अत्याचार करके कितने ही राज्यों को वरवाद कर दिया था। जालिम सिंह ने मोसेज नामक एक सेनापति को बुलाया और उसको आथून के दुर्ग पर अधिकार करने एवम् विद्रोही सामन्तों का दमन करने का आदेश दिया। मोसेज अपनी सेना लेकर रवाना हुआ और आथून के दुर्ग को जाकर उसने घेर लिया। उस दुर्ग में एकत्रित सामन्त तैयार होकर बाहर निकले और उन्होंने शत्रु पर आक्रमण किया। यह युद्ध कई महीने तक चलता रहा। किसी पक्ष की विजय न हुई। आथून के दुर्ग में जो सामन्त एकत्रित थे, वे बड़े साहस के साथ युद्ध करके शत्रु से दुर्ग की रक्षा करते रहे। लेकिन कई महीनों के बाद उस दुर्ग में उनके खाने-पीने की जो सामग्री थी, वह सब खत्म हो गयी। इसलिए दुर्ग के सामन्तों के सामने भयानक संकटपूर्ण परिस्थिति पैदा हुई। इस दशा में उन सामन्तों ने सेनापति मोसेज से कुछ प्रार्थना की। उसने उस प्रार्थना को स्वीकार करके सामन्तों को सकुशल दुर्ग के बाहर चले जाने का अवसर दिया। दुर्ग से निकलकर सामन्त कोटा राज्य को छोड़कर चले गये और उन्होंने दूसरे राज्यों में जाकर आश्रय लिया। जालिम सिंह ने इस समय जिस वुद्धिमानी से काम लिया था, उसमे उसको पूर्ण रूप से सफलता मिली और सामन्तो ने उसके विरुद्ध जो तैयारी की थी वह नष्ट हो गयी। उन सामन्तों के चले जाने पर, जो भूमि उनको दी गयी थी, वह फिर से राज्य में मिला ली गयी। विद्रोही दल के प्रधान देवसिंह ने भी दूसरे राज्य में जाकर आश्रय लिया था। वहाँ पर 279