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पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२८४

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और बाँकडोत का सामन्त जालिम सिंह के प्रधान शत्रुओं में थे। इसलिए जालिम सिंह ने धाभाई को किसी प्रकार मिला लिया और उसके द्वारा जालिम सिंह ने स्वरूप सिंह को मरवा डाला। स्वरूप सिंह के साथ धाभाई का कोई विरोध न था। लेकिन जालिम सिंह को कूटनीति धाभाई पर काम कर गयी। जालिम सिंह ने ही धाभाई को उकसाया, जिससे उसने स्वरूप सिंह पर आक्रमण करके उसको मार डाला। धाभाई जसकर्ण के इस अपराध की सभी ने निन्दा की और जिस जालिम सिंह ने उसको उकसाया था, वह भी उसके विरुद्ध हो गया। इस प्रकार की निन्दा से अपमानित होकर जसकर्ण कोटा राज्य से चला गया और जयपुर में उसकी मृत्यु हो गयी। ऊपर यह लिखा जा चुका है कि राज्य में जो सामन्त जालिम सिंह के विरोधी थे, स्वरूप सिंह और जसकर्ण उनमें प्रधान थे। इसलिए जालिम सिंह ने अपनी राजनीतिक चालों के द्वारा जसकर्ण को भड़का कर स्वरूप सिंह को मरवा डाला। उसने जसकर्ण से कहा था कि "स्वरूप सिंह कोटा के राज्य सिंहासन का अधिकार प्राप्त करना चाहता है इसीलिए वह मेरा शत्रु बन गया है। वह किसी पडयन्त्र के द्वारा उम्मेद सिंह को मार कर सिंहासन पर बैठना चाहता है। यदि इसका कोई उपाय न किया गया तो उम्मेद सिंह का भविष्य निश्चित रूप से अंधकार में है।" जसकर्ण ने जालिम सिंह की इन बातों का विश्वास कर लिया। उसने किसी प्रकार की खोज न की। वह उम्मेद सिंह के किसी शत्रु को जीवित नहीं देखना चाहता था। इसलिए उसने स्वरूप सिंह को मार डाला। जालिम सिंह को अपनी राजनीति में पूरी सफलता मिली। कोटा के जो सामन्त और धनिक लोग उसके विरोधी थे, वे सब एक दूसरे से मिले और उन्होंने इस प्रकार के अन्याय को देखकर कोटा से चले जाने का निर्णय किया। अपने निश्चय के अनुसार वे सभी लोग अपने-अपने नगरों और स्थानों से निकल गये और दूसरे राज्य में जाकर रहने लगे। राज्य से निकले हुए लोगों ने जाने के समय कहा कि हम लोग राज्य को छोड़कर जाते हैं। लेकिन जालिम सिंह के अन्याय और अत्याचारों का हम लोग जरूर बदला देंगे। कोटा के भागे हुए सामन्त जयपुर और जोधपुर राज्य में जाकर रहने लगे और वहाँ के राजाओं से मिल कर जालिम सिंह के विरुद्ध प्रचार करने लगे। इन दिनों में मराठा लोगों के अत्याचार राजस्थान के राज्यों में लगातार बढ़ रहे थे। इसलिए जयपुर और जोधपुर मे जालिम सिंह के विरुद्ध कोई तैयारी न हो सकती थी। कोटा में जालिम सिंह को भागे हुए सामन्तों के पड़यन्त्रों का पता चल गया। इसलिए उसने जयपुर और जोधपुर के राजाओ के पास संदेश भेजा कि कोटा राज्य के विद्रोही सामन्तो को उनको अपने यहाँ आश्रय नहीं देना चाहिए। इसका परिणाम यह निकला कि उन भागे हुए सामन्तों को जो आश्रय मिला था, उसमें बाधा पैदा हो गयी। मराठो के अत्याचारो के दिनो मे कोई भी राजपूत राजा आपस मे शत्रुता पैदा करना उचित नहीं समझता था। इन परिस्थितियों मे जो सामन्त कोटा राज्य छोड़कर चले गये थे, उनको कोटा में आने के लिए फिर से विवश होना पड़ा और उन्होंने जालिम सिंह के पास संदेश भेजकर 278