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सेनापति इंगले के परिवार के साथ जालिम सिंह ने अपनी घनिष्ठ मित्रता पैदा कर ली थी। इसी इंगले वंश का बालाराव मेवाड़ के द्वारा कैद करके उदयपुर के कारागार में रखा गया था। जालिम सिंह बालाराव को कैद से छुड़ाने के लिए उदयपुर गया। उसके फलस्वरूप जालिम सिंह के प्रति राणा के व्यवहारो में बहुत अन्तर पड़ गया और जालिम सिंह ने मेवाड़ राज्य के सम्बन्ध में जो कुछ सोच रखा था, उसकी सफलता में भयानक आघात पहुँचा। जालिम सिंह ऐसे अवसरों पर बड़ी राजनीति से काम लेता था। उसने मेवाड़ राज्य में अपनी असफलता को देखकर एक दूसरी योजना को जन्म दिया। सन् 1800 तक जालिम सिंह कोटा के दुर्ग के महल में रहा। परन्तु सन् 1803-4 ईसवी में बालाराव को कैद से छुड़ाने के बाद जब वह मेवाड़ से लौटकर आया तो कोटा के दुर्ग के महल को छोड़कर अन्यत्र अपने रहने का इरादा किया। उन दिनों में अंग्रेजी सेना ने राजपूतों के साथ संगठित होकर मराठों से युद्ध करना आरम्भ कर दिया था और उनके अधिकार से बहुत-से नगरो तथा ग्रामो को अंग्रेजी सेना ने छीन लिया था। इसके फलस्वरूप मराठों की सेना कई टुकड़ो में बँट गयी थी और उसने राजस्थान के अरक्षित स्थानों पर लूटमार करके भयानक अत्याचार किए थे। जालिम सिंह ने ऐसे अवसर पर बुद्धिमानी से काम लिया और उसने राजधानी के महल मे रहना छोड़कर उस स्थान पर रहने का निर्णय किया, जहाँ पर मराठे आक्रमण करके लूट-मार कर सकते थे। ऐसा करने में उसके दो उद्देश्य थे। पहला उद्देश्य यह था कि वह किसानों की मालगुजारी के नियमों में सुधार और परिवर्तन करना चाहता था, दूसरा उद्देश्य यह था कि वह ऐसे स्थान पर रहना चाहता था, जहाँ से किसी बाहरी आक्रमण को रोक सकने में वह समर्थ हो सके। राजधानी के महल मे रहना छोड़ने मे जालिम सिंह के जो उद्देश्य ऊपर लिखे गये हैं, मैं उन पर अधिक विश्वास करता हूँ। लेकिन हाड़ा वंश के प्राचीन ग्रन्थों में कुछ दूसरी ही बात का उल्लेख किया गया है। उसमें बताया गया है कि एक दिन रात में महल के ऊपर बैठकर एक उल्लू कुछ देर तक बोलता रहा। जालिम सिंह ने रात मे उसको बोली को सुना और सबेरा होने पर उसने ज्योतिषियों को बुलाकर पूछा। जालिम सिंह की बात को सुनकर उन लोगों ने उत्तर दिया : "इस महल में अब आप का रहना किसी प्रकार उचित नहीं है क्योकि इस महल में रहने से आप के अनिष्ट की सम्भावना बनी है।" जालिम सिंह ने ज्योतिषियों के मुख से इस प्रकार का उत्तर सुनकर राजधानी के महल में रहना छोड़ दिया। हाड़ा वंश के प्राचीन ग्रन्थों में जालिम सिंह के महल छोड़ने के सम्बन्ध में इस प्रकार उल्लेख किया गया है। परन्तु मैं इस प्रकार की बातों पर विश्वास नहीं करता। जो कुछ भी हो, जालिम सिंह ने राजधानी के महल में रहना छोड़कर जब अपने राज्य के विभिन्न नगरों और स्थानों का भ्रमण किया तो उस राज्य की दुरवस्था का बहुत कुछ उसको ज्ञान हुआ। राज्य की इस अधोगति से वह पहले परिचित न था। राज कर्मचारियों और अधिकारियो ने उसको कभी इस प्रकार की बाते बतायी न थीं, जिनसे वह किसानों और दूसरे लोगों की दीनता और दरिद्रता को समझ सकता। उसने इस अवसर पर किसानों की अवस्था 284