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थीं, वे निष्फल नहीं गयीं। जालिम सिंह ने अपनी नयी व्यवस्था चालू करने के बाद इस बात का आदेश दिया कि वर्षा न होने के कारण अथवा और किसी सवव से यदि राज्य में अकाल पड़ जाएगा तो पहले की तरह फसल न होने पर भी किसानों को निर्धारित कर देने में कोई सुभीता न दिया जाएगा और उन्हें सम्पूर्ण राज्य कर अदा करना पड़ेगा। यदि कोई किसान उसकी अदायगी न करेगा तो उसकी भूमि लेकर पटेल किसी दूसरे को दे देने का पूरा अधिकारी होगा। अगर उस प्रकार की भूमि का कोई लेने वाला न होगा तो उसे राज्य की भूमि में मिला लिया जाएगा। इस प्रकार जालिम सिंह ने कोटा राज्य की भूमि का नया प्रबन्ध किया। लेकिन भूमि का प्रवन्ध अव भी पटेलो के हाथ मे ही रखा गया और यह निश्चय किया गया कि जो पटेल किसानों के साथ ईमानदारी का व्यवहार करेंगे, राज्य की तरफ से उनको सम्मान दिया जाएगा। इस व्यवस्था के अनुसार पटेल ग्रामों के प्रतिनिधि और राज्य के कर्मचारी माने गये और उनको सम्मान में राज्य की तरफ से सोने के कंकण और पगड़ियाँ दी गयीं। जालिम सिंह ने राज्य के ग्रामों की परिस्थितियों में सुधार करने के लिए अपने यहाँ एक समिति कायम की और उस समिति में ग्रामों के चुने हुए पटेलों को भी रखा। उस समिति को राज्य की व्यवस्था में अनेक प्रकार के अधिकार दिये गये और उनके द्वारा देहाती क्षेत्रों में शान्ति कायम करने की व्यवस्था की गई। उस समिति को यह भी अधिकार दिया गया कि राज्य की तरफ से व्यवस्था में कोई भी त्रुटि होने पर उसका विचार और निर्णय वह समिति कर सकती है। उसका निर्णय राजा के निकट फिर से विचारणीय होगा। जालिम सिंह ने अपने राज्य में इस प्रकार की नयी व्यवस्था कायम करके न केवल अपनी लोकप्रियता का परिचय दिया, बल्कि उसने राष्ट्रीय पंचायत कायम करके गज्य की व्यवस्था में प्रजा को जो अधिकार दिये, वे प्रत्येक अवस्था में प्रशंसनीय थे। उसकी इस व्यवस्था पर मैं विना किसी संकोच के कहने के लिए तैयार हूँ कि राज्य की इतनी सुन्दर व्यवस्था कोटा मे पहले कभी नहीं रही। अपनी नयी व्यवस्था के अनुसार जालिम सिंह ने इस बात की पूरी कोशिश की कि पटेल लोग किसानों पर किसी प्रकार का अत्याचार न कर सके। इसमे कुछ दिनों तक उसे सफलता भी मिली लेकिन पटेलों को अधिक समय तक उसके द्वारा नियन्त्रण में नहीं रखा जा सका। जो पटेल व्यवस्था के बन्धन में आ गये थे, उन्होंने ऐसे उपायो की खोज की, जिससे वे वर्तमान व्यवस्था में भी मनमानी कर सकें। अन्त में उन्होंने अपने लिए एक रास्ता निकाल ही लिया। राजस्थान में बोहरा नामक वैश्यों की एक जाति रहा करती है, वे लोग किसानों को कर्ज में रुपये देते हैं और उनसे व्याज वसूल करते हैं। राज्य के पटेलों ने उन बोहरा लोगों को अपने अधिकार में कर लिया। राज्य के किसान आवश्यकता पड़ने पर वोहरा लोगों से ऋण मे रुपये लेते थे और खेनो को बोने के समय अनाज भी लिया करते थे। खेतों का अनाज तैयार होने के पहले बोहरा लोग किसानो से किसी प्रकार का तकाजा नहीं करते थे। लेकिन अनाज तैयार हान पर सूद मिलाकर कुल रुपये किसान लोग अपने महाजन का अदा कर देते थे। इस प्रकार किसानों 287