पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२९९

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कोटा-राज्य के हिसाव के कागजों को देखकर मालूम हुआ कि यहाँ के राजा की प्रजा से कर में जो रुपये वार्पिक मिलते हैं, उनकी संख्या पच्चीस लाख रुपये तक है। जालिमसिंह ने स्वयं इस बात को स्वीकार किया है कि मेरी यह आमदनी उस भूमि से प्रति वर्ष होती है, जिसे मैंने अपनी समझकर किसानों को दे रखी है। सन् 1809 ईसवी में जालिम सिंह ने अपने राज्य में उस अनाज पर एक कर लगाया था, जो राज्य से बाहर जाता था। उस कर के कारण राज्य में बहुत अन्याय होने लगे थे। पहले यह कर वेचने वालों पर लगा था। लेकिन बाद में राज्य के कुछ लोगों के परामर्श से वह कर खरीदने वालों पर भी लागू कर दिया गया। केवल इस कर से वर्ष में जालिम सिंह को दस लाख रुपये की आमदनी होने लगी। यह कर एक ही अनाज के ऊपर चार-चार, पाँच-पाँच वार तक वसूल होता था। इसके कारण प्रजा की कठिनाइयाँ अधिक बढ़ गयीं और लोगों की गरीवी वढ़ने लगी। साधारण आदमियों से लेकर सामन्तों तक यह कर सभी को देना पड़ता था। इस कर के वसूल करने में राज्य के कर्मचारियों ने भयानक अत्याचार किये। इस कर को वसूल करने का कोई नियम न था। वसूल करने वाले अपनी इच्छा से उसे कम और अधिक कर देते थे और इसके विरुद्ध राज्य में कोई सुनवायी न थी। अंग्रेजों के साथ कोटा राज्य की सन्धि होने के दिनों मे इसके अत्याचार बहुत बढ़े हुए थे। कर वसूल करने वालों ने जालिम सिंह की आज्ञा के विरुद्ध लोगों के साथ इतना अधिक अत्याचार किया था कि वे जब चाहते थे, राज्य में इस कर को वसूल कर लेते थे। यह भी होता था कि जालिम सिंह के आदेश देने पर कर वसूल करने की कर्मचारी एक सूची तैयार कर लेते थे और उसके अनुसार गरीव और अमीर सभी से कर वसूल कर लिया जाता था। उस सूची को बनाने में किसी नियम का प्रयोग नहीं होता था। राज कर्मचारी जिस पर जितना चाहते थे, कर लगा देते थे और वड़ी कठोरता के साथ वह कर वसूल कर लिया जाता था। उस कर से कोई भी आदमी राज कर्मचारियों की इच्छा के विना बच नहीं सकता था। उसमें शत्रु और मित्र का कोई भेद नहीं रहता था। जिस पर जो कर लगा दिया जाता था, उसको उतना कर देना पड़ता था। इस कर में जालिम सिंह के एक पुराने मित्र पण्डित वेलाल को एक बार में पच्चीस लाख रुपये, एक सामन्त की अधीनता में रहने वाले किसी आदमी को पाँच हजार रुपये और किसी मन्त्री को भी पाँच हजार रुपये देने पड़े थे। राज्य के महाजनों में बहुतों को चार-चार और पाँच-पाँच हजार रुपये एक-एक वार मे देने पड़े थे। इस कर को वसूल करने में राज कर्मचारियों के द्वारा वहुत अत्याचार वढ़ गये और राज्य में भयानक अशान्ति पैदा हो गयी। प्रजा के असन्तोप पूर्ण चीत्कार करने से कोटा के राजा को वहुत दुःखी होना पड़ा और उसने जालिम सिंह के विरुद्ध वहुतसी वातें सोच डाली। कोटा राज्य के साथ सन्धि करने के वाद अंग्रेजी सरकार ने राज्य के सभी लोगो के साथ एक सा व्यवहार करना आरम्भ किया। अंग्रेजों के इस व्यवहार का प्रभाव जालिम सिह पर भी पड़ा। उसके द्वारा जो अत्याचार राज्य में बढ़ रहे थे, वे लगातार इसीलिए कम होने लगे कि जालिम सिह को अंग्रेजी सरकार के अप्रसन्न होने का भय मालूम हुआ। इस दशा में लो कर अनाज की बिक्री पर लगाया गया था, वह वेचने वाले किसानो और खरीदने वालो पर ही एक निर्धारित नियम के साथ वसूल होने लगा और वाकी लोगों को उससे मुक्ति मिल गयी। इस दशा मे भी उस कर से राज्य को पाँच लाख रुपये वार्पिक वसूल होने लगे थे। 293