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पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३००

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राज्य की समस्त भूमि से जालिम सिंह को वार्पिक पचास लाख रुपये की आमदन होती थी। इसके अतिरिक्त जो भूमि उसके परिवार के लोगों के अधिकार मे थी, उससे पाँच लाख रुपये की आमदनी अलग से होती थी, जो उन्हीं लोगो के खर्च के काम में आती थी। जालिम सिंह ने विविध साधनों से चालीस वर्ष के शासन में जिस प्रकार कोटा मे अपना आधिपत्य कायम किया था, उसको देखकर दूसरे देशों के लोग न जाने क्या अनुमान कर सकते हैं। एक नेत्र से हीन होकर अस्सी वर्ष की आयु में उसने शासन मे जो सफलता प्राप्त की, उसको देखकर कोई भी सहज ही उसकी प्रशंसा कर सकता है। उसने दूसरों के देखने मे कृपि के व्यवसाय मे अद्भुत सफलता पायी, व्यवसाय के क्षेत्र में उसने अत्याधिक सम्पत्ति एकत्रित की और प्रजा के ऊपर कर लगाकर उसने अपरिमित सम्पत्ति एकत्रित करने में अपनी बुद्धिमता का परिचय दिया। इन सभी बातों में कोई भी उसकी दृरदर्शिता की सराहना कर सकता है। परन्तु अपने इन गुणों में वह कहाँ तक प्रशसा का अधिकारी था, यह एक प्रश्न अलग से उसके सम्बन्ध में पैदा होता है, जो विचारणीय है। इसमें सन्देह नहीं कि जालिम सिह ने कृपि के कार्य में, व्यावसायिक नीति मे और सम्पत्ति को एकत्रित करने में अपनी अद्भुत प्रतिभा का प्रदर्शन किया। उसने इतना ही नहीं किया, बल्कि उसने कोटा राज्य में अपने शासन को सुदृढ बनाया। राज्य की रक्षा करने के लिए अपने अधिकार में उसने वीस हजार सैनिको की सेना रखी थी। उस सेना को उसने युद्ध की अच्छी शिक्षा दी थी। राज्य के दुर्गो मे ऐसी व्यवस्था कर दी थी, जिससे वे पहले की अपेक्षा बहुत काम के बन गये। उन दुर्गो में सभी प्रकार के अस्त्र-शस्त्रो के साथ वहुत-सी युद्ध सामग्री एकत्रित की थी। राज्य में कही पर कोई विरोधी कार्य न हो सके, इसके लिए उसने गुप्तचरों का अच्छा प्रबन्ध किया। राज्य मे अनाज के भावो पर वह नियन्त्रण रखता था और दूसरे राज्य के भावों को देखकर वह अपने यहाँ के भावों मे तुरन्त परिवर्तन कर देता था। जालिम सिंह ने राज्य के अनेक स्थानो पर बहुत से बाग लगवाये थे। उन वागो के फल राज्य के विभिन्न बाजारो में बिकने के लिए जाते थे। ____ जालिम सिंह ने कोटा के शासन में कुछ इस प्रकार की व्यवस्था की थी, जो न्यायपूर्ण होने पर भी लोगों को आश्चर्यजनक मालूम हो सकती है। भिक्षा मांगने वाले भिखारियों, साधुओं और सन्यासियों पर भी उसने कर लगाया था। जो विधवा स्त्री अपना दूसरा विवाह करना चाहती थी, उसको राज्य-कर मे बहुत सा धन देना पड़ता था। इस प्रकार जो उसने नये कर लगाये थे, उनमें कुछ का विरोध होने से उसने उनको वापस ले लिया था। राजस्थान के प्रत्येक राज्य मे प्राचीनकाल से भाटो और कवियो का आदर होता आया है। विवाह जैसे कार्यो के अवसरो पर राज्य की तरफ से उनको बहुत सा धन दिया जाता है। इस प्रकार के धन को पाकर भाट और कवि लोग अपनी कविताओ के द्वारा दान देने वाले के यश का गान करते है। इस प्रकार का प्रचार सम्पूर्ण राजस्थान में अब तक पाया जाता है। लेकिन जालिम सिंह इन भाटो और कवियो की कविताओ मे प्रशसा को सुनकर प्रसन्न नहीं होता था। उनका कहना था कि इन कवियो की कविताओं मे एक भी सत्य नही होता, वे झूठी प्रशंसा के गीत गाया करते है। उसको इस बात का उत्तर देते हुए एक कवि ने कहा : "सत्य 294