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पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३०५

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सेनापति बख्शी ने जालिम सिंह के पास जाकर दस लाख रुपये देने की वात कही। उसको सुनकर जालिम सिंह ने वख्शी को होलकर के पास भेज दिया और दस लाख रुपये देने से साफ-साफ इनकार करके उसने कहला भेजा कि होलकर को जो कुछ करना हो करे।* जालिम सिंह का उत्तर पाकर सेनापति होलकर अपने शिविर से रवाना हुआ और कोटा राज्य के पास जाकर आक्रमण करने के लिए मुकाम किया। होलकर की सेना के आ जाने का समाचार जालिम सिंह ने सुना। उसने राजधानी की चारों ओर की दीवारों पर अपनी तोपें लगा देने का तुरन्त आदेश दिया। इसके बाद उसने युद्ध की तैयारी आरम्भ कर दी। कोटा राज्य के आस-पास पहाड़ी जातियों के जो लोग रहते थे, जालिम सिंह की आज्ञानुसार उन लोगों ने संगठित होकर होलकर की सेना पर आक्रमण करने और उसके शिविर में लूटमार करने की तैयारी की। कोटा राज्य के समीप पहुँच कर और मुकाम कर सेनापति होलकर ने बख्शी का लिखा हुआ दस लाख रुपये का कागज जालिम सिंह के पास भेजा। जालिम सिंह ने उस रुपये की अदायगी से विल्कुल इन्कार कर दिया। इस दशा मे दोनों ओर से युद्ध का होना अनिवार्य हो गया। लेकिन होलकर की तरफ से उसकी सेना का एक अधिकारी इसके बाद भी युद्ध न होने की चेष्टा करता रहा। उसने जालिम सिंह के पास कहला भेजा कि जालिम सिंह और होलकर की भेंट से होने वाला संघर्ष मिट सकता है। जालिम सिंह होलकर का विश्वास नहीं करता था। इसलिए उसने उत्तर में कहला भेजा कि होलकर के साथ मेरी वातचीत चम्बल नदी के जल में नौका पर वैठ कर हो सकती है। होलकर ने उसके इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। दोनों तरफ से वातचीत की तैयारियाँ होने लगी। जालिम सिंह ने दो नावें तैयार करायीं और प्रत्येक में उसने वीस सशस्त्र सैनिकों को विठाकर एक तीसरी नाव मे स्वयं बैठा और उसकी वे तीनों नावें चम्बल नदी के अगाध जल में तैरती हुई रवाना हुईं। होलकर भी अपने शरीर रक्षकों के साथ नावों पर चल कर चम्बल नदी मे जल के उस स्थान पर आकर पहुँच गया, जो दोनों तरफ से निश्चित किया गया था। नदी के जल में एक नाव के ऊपर कालीन विछाया गया। उस कालीन पर जालिम सिंह और होलकर-दोनों बैठे। बातचीत आरम्भ हो गयी। उस समय होलकर ने जालिम सिंह को काका कहकर और जालिम सिंह ने होलकर को भतीजा कह कर बातचीत की। यद्यपि वह वातचीत शान्तिपूर्वक हो रही थी, परन्तु दोनो ओर के आये हुए रक्षक सैनिक अपनी नावों में बैठे हुए बड़ी सावधानी के साथ दोनों को देख रहे थे और जरा भी दोनों के बीच असन्तोप देखकर आक्रमण करने के लिए तैयार थे। लेकिन इस प्रकार का अवसर नहीं आया और जालिम सिंह ने होलकर को तीन लाख रुपये देकर होने वाले युद्ध को रोक दिया। वे रुपये लेकर होलकर अपनी सेना के साथ चला गया। कोटा राज्य के शासन का भार अपने अधिकार में लेकर जालिम सिंह ने बड़ी बुद्धिमानी और सावधानी के साथ राज्य की परिस्थितियों पर ध्यान दिया। उसने पडौसी राज्यों जहाँ तक मुझं मा नम हे, होलकर के द्वारा गिरफ्तार होने के बाद वजी ने अपमान अनुभव करके विष खा लिया और आत्म त्या कर ली। 299